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Second Proof Dt. 23-5-2017 8.
बूढ़े बाबा : गांधी ने भी मतभेदों के बीच में काम किया और अन्यायों के सामने युद्ध । वह भी एक युद्ध था। ज़िंदगी भर का एक बहादुर योद्धा जो कि हिंसक हथियारों के बिना लड़ा और वह भी संसार की एक बड़ी सल्तनत के साथ '
जनरल : बड़ी ताज्जुब की बात है .... !
बूढ़े बाबा गांधी के पदचिन्हों पर ही चलने की मेरी विनम्र कोशिश रही है.... अब..... अब....... (दर्द बढ़ता है खून टपकता रहता है, जनरल उसे बेन्डेज-पट्टी बाँधने का प्रयत्न करता है । ) जनरल : आप का घाव बहुत गहरा दीखता है.... मुझे यह पट्टी बाँधने दें... ओह यह खून भी टपकने
लगा
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• महासैनिक •
बूढ़े बाबा : मेरे खून के टपकने पर फिकर न करें। मैं कुछ खुश हूँ कि मैं आप तक मेरा शांति का पयगाम पहुँचा सका.... । अगर मेरी आखिरी साँस के पहले युद्ध रोका गया और मेरा सपना साकार हो सका तो मैं बेहद खुश होऊँगा । . जहाँ तक मेरे शारीरिक घावों का सवाल है...... मुझे उसका तनिक भी असर नहीं... ।
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जनरल : इतने गहरे घाव और ज़रा भी असर नहीं ?
बूढ़े बाबा : यकीन मानिये, मालिक की मेहरबानी से मैं अपने शरीर से पूरा अलग हो सका हूँ... । अब मैं खास दर्द नहीं महसूस कर रहा ।
जनरल : बड़ी खूब । खैर... बाबा, आप कह रहे थे कि गांधी एक ऐसा योद्धा था कि जो बिना हिंसक हथियारों के लड़ा, तो यह कैसे मुमकिन हो सकता है? तो फिर उसके हथियार कौन कौन से थे ?
बूढ़े बाबा : उसके हथियार थे - देह के बजाय आत्मा का ज्ञान, सत्य की खोज का आग्रह, प्रेम से भरा बलिदान, उपवास और "अहसयोग" के द्वारा अहिंसक प्रतिकार, वगैरह ।
हिंसक हथियारों के ऐसे अहिंसक
जनरल : लेकिन एक सेनानी की हैसियत से मैं जानता हूँ कि बिना हथियारों का युद्ध कहीं कामयाब नहीं हुआ ।
बूढ़े बाबा कामयाच नहीं क्यों हुआ ? हुआ है और हो सकता है।
जनरल (अपनी घड़ी को बारबार देखते हुए और किसी की प्रतीक्षा में चारों ओर नज़र डालते हुए) लेकिन यह आज के ग्रहोपग्रह और अवकाश के ज़माने में ही नहीं, गांधी के ज़माने में भी मुमकिन नहीं खाई देता, फिर भी मुझे यह जानने की दिलचस्पी है कि गांधी ने इन साधनों और हथियारों को प्रयोग में किस प्रकार लिखी ?
बड़े बाबा अफ्रीका और हिन्दोस्तां के असहयोग आंदोलन और अलग अलग सत्याग्रह, ऐतिहासिक दांडीयात्रा .... और 'भारत छोड़ो' आंदोलन वगैरह ऐसे सबूत है जो इन हथियारों को कामयाबी के साथ गांधी के द्वारा काम में लाये जाने की गवाही देते हैं......
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