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Second Proof Dr. 23-5-2017 - 23
• महासैनिक •
अंक-३ दृश्य : प्रथम
स्थान : वही
समय : प्रातःकाल मार्शल : (आरम्भ में खिड़की के पास कुर्सी पर किताब में मुंह डाले पढ़ते हुए, बाद में खिड़की के बाहर विचारमुद्रा में देखते हुए और बाद में उस कमरे में चक्कर काटते हुए : किताब हाथ में ही है : 'गांधी - एक महासैनिक'।)
गांधी के मार्गदर्शक ने अपनी अहिंसा के जरिये बाघ-शेर को अपने मित्र बना कर जीत लिया है,तो गांधी ने अपने देश के दुश्मन शासक अंग्रेजों को ! जनरल (अंदर से युनिफोर्म पहनकर आते हुए): लेकिन मुझे तो मार्शल, ये सारी बातें बनावटी दिखाई देती हैं। ऐसा कैसे मुमकिन हो सकता है ? सवाल यह है कि दुश्मन को या तो मारकर जीता
जा सकता है या हराकर ।.... अहिंसा या प्रेम से युद्ध में काम किस तरह चल सकता है? मार्शल : मैं भी यही सोचता हूँ, साहब ! जनरल : अच्छा, इस किताब में गांधी के उन अहिंसक युद्धों के बारे में उनके तरीकों के बारे में क्या बताया है ? मार्शल : उनके सभी ऐसे युद्धों में - सच्चाई पर डटे रहना, खुद मरना पड़े तो भी हथियार नहीं उठाना और दुश्मन के खिलाफ नफरत नहीं रखना, वगैरह तरीके खास तौर पर जान-पड़ते हैं। इन तरीकों के साथ 'असहयोग' को जोड़कर वे सब युद्धों में लड़े हुए दिखाई देते हैं। जनरल : लेकिन इसके परिणाम क्या आये है ? मार्शल : परिणाम में या तो दुश्मन झुक गया है, या बदला है । कहीं कहीं असफल भी होना पड़ा है। हकीकत में शुरु में तो असफलता ही असफलता रही; लेकिन कहते हैं कि, गांधी अडिग रहे, उनके पीछे उनका सारा देश चलता रहा और आखिर दुश्मनों को अपने देश से हटाने के हद तक तो वे सफल हुए ही ।। जनरल : गांधी की सफलता जिस-से बढ़ी हो ऐसे उनके युद्ध कौन कौन से थे ? मार्शल : वैसे तो सभी युद्धों का बड़ा असर है लेकिन १९३० का 'दांडीकूच' का नमक का सत्याग्रह
और १९४२ का 'भारत छोड़ो' आन्दोलन - ये दो उनके सारे देश को जगाने वाले और आखिर को सफलता दिलानेवाले साबित हुए ।
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