Book Title: Maha Sainik Hindi
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Yogindra Yugpradhan Sahajanandghan Prakashan Pratishthan

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Page 35
________________ Second Proof Dt. 23-5-2017- 28 जनरल : अंदर भेज दो सिपाही: जी, अच्छी बात । (जाता हैं। ) ग्राउन्ड स्टेशन कन्ट्रोलर : गुड मोर्निंग, सर । जनरल : गुड़ मोर्निंग ( इशारे से बैठने को कहता है, बैठता है ।) ... 1 हमारा पहला राकेट अब कहां तक पहुंचा है ? स्टैशन कन्ट्रोलर ( नकशे में बतलाकर) वह अब ठीक उसी स्पोट पर पहुँच चुका हैं । • महासैनिक • जनरल (घड़ी देखते हुए) : तो अब थोड़ी ही देर में उस राकेट के हमारे अवकाशी सैनिक अपना काम शुरु कर देंगे न ? मार्शल (बीच में) शुरू ही क्या, तमाम हुआ समझें क्यों मि. कन्ट्रोलर ? : स्टेशन कन्ट्रोलर जी हाँ साहब, दुश्मन देश के करीब सभी आदमियों का अब खात्मा ही हुआ समझो... - जनरल : ( दीवार पर दूर लटकते हुए दुनिया के नकशे के पास जाकर ) बहुत अच्छा । आज इस देश का यह रंग..... दुनिया से मिट जायगा और दुनिया देखती रह जायगी । ( उतना रंग मिटाने की कोशिश करता है निकट का गांधी का नकशा मानों उसे कुछ कहता हुआ रोकता है वहाँ लिखा हुआ "विश्वशान्ति का महासैनिक महात्मा गांधी ।....." — : "दूसरे देशों को मिटानेवाले देश खुद ही मिट जाते हैं। इसलिए दूसरों को मिटाने की महत्त्वाकांक्षा I छोड़ो जीयो, जीने दो और संसार को सुंदर रहने दो... " ( पार्श्वगीत की पंक्ति सुनाई देती है - 'गर्व कियो - सोई नर हार्यो...." ) पार्श्वगीत पंक्ति : ( स्त्रीस्वर ) "गर्व कियो सोई नर हार्यो..." जनरल : ( प्रतिक्रिया के साथ नशे का रंग मिटाते हुए और गांधीवाले नकशे का सूत्र पढ़ते हुए ) "दूसरे देशों को मिटानेवाले देश खुद ही मिट जाते हैं....." ( सोच में पड़ जाता है । जनरल रुककर विचार में खो जाता है, दूसरे सब स्तब्ध रहते हैं। कुछ क्षणों के बाद जनरल का सुप्त अहंकार प्रबुद्ध होकर जाग उठता है और उसकी घनी आवाज़ सुनाई देती है, प्रथम पार्श्वघोष के रूप में और बाद में जनरल के प्रकट वाक्योच्चार के रूप में - ) (28) पार्श्वघोष (जनरल का ): "नहीं.... नहीं... हम कैसे मिट सकते हैं? हमें कौन मिटा सकता है ? तीसरे विश्वयुद्ध के हम विजयी लोग और मैं... मैं भी कौन ? हम इस चौथे विश्वयुद्ध में दुश्मन देशों का रंग मिटाकर ही रहेंगे....."

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