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Second Proof Dt. 23-5-2017 - 12
• महासैनिक .
जनरल : नहीं, नहीं, मार्शल ! आप तो बिलकुल ठीक वक़्त पर आये हैं। मैं ही आज कुछ कारणों से वक्त के पहले आया ।... अच्छा... और कोई नई घटनाएँ घटी हैं ? मार्शल : (बम की आवाज़ों को लक्ष्य कर) इन बोम्बार्डमैन्ट के सिवा खास कोई नहीं ! साहब । मैं समझता हूँ कि अब आप को चलकर पहले आराम कर लेना चाहिये, हमारे प्लानों की चर्चा हम बड़ी सुबह कर सकते हैं... जनरल : हाँ, कोई खास गंभीर बात न हो तो, मैं जरुर थोड़ा आराम कर लेना चाहूंगा । मार्शल : तो फिर हम कैम्प को चलें, साहब ! सब कुछ तैयार ही है। (चलने को तत्परता दिखाते हैं) जनरल : लेकिन चलने से पूर्ण हमें एक निराले सैनिक को दफ़नाने जाना है, मार्शल... ! (सैनिकों से -) अय सिपाहियों।। सिपाही-दोनों : (सॅल्युट कर) यस सर ! जनरल : यहाँ ही एक गड्डा खोदो, बहुत जल्दी... । सिपाही : यस सर । ( दोनों खोदने लगते हैं) मार्शल : क्यों, किसे दफ़नाना है, साहब ? जनरल : (दूर के बाबा के शब को टार्च से दीखलाकर) उस बूढ़े को.... जानते हो तुम उसे ? मार्शल : (नजदिक जाकर पहचानकर) ओह... यह तो विश्व शान्ति के शोधक और सैनिक !(जनरल अपना बंडल बांधते हैं) सिपाही : (सॅल्युट कर) गड्डा तैयार है, साहब ! (मार्शल और मेजर दोनों खुद बूढ़े बाबा के मृतदेह को आदर के साथ, सम्हालकर उठाते हैं और गड्ढे में रखते हैं, मौन प्रार्थना कर, उपर मिट्टी डालकर वे सब वहाँ से चलते हैं। दोनों सिपाही जनरल के पॅरेश्युट और बंडल को उठा लेते हैं ।) (जनरल के माटी ओढ़ाते समय) बाबा की आवाज़ की प्रतिध्वनि :"जनरल साहब । आप एक सेनानी हैं । परमात्मा आप को एक सचमुच ही बहादुर सेनानी बनाएँ- बिना हिंसक हथियारों के, बिना नफरत के सेनानी ! गांधी से भी आगे बढ़े हुए सेनानी !!..." जनरल : ( दोहराते हुए, भावपूर्ण) "गांधी से भी आगे बढ़े हुए सेनानी !..." (चल देते हैं मार्शल के साथ । वाद्यसंगीत ।). पार्श्वगीत पंक्ति : शेर "शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले, अमन पे मिटनेवालों का यही बाकी निशाँ होगा।"
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