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Second Proof Dt. 23-5-2017 - 18
• महासैनिक .
इसी स्थान पर ध्यान की अवस्था में उन्हें एक झांकी हुई.... उन्हें दिखाई दिया यह शेर - हिंसक नहीं, अहिंसक ! अहिंसा के यह शेर थे एक नौजवान बैरिस्टर -
(दृश्य में गांधीजी के युवा रूप का दर्शन-श्रीमद राजचन्द्र की (पुरुष-स्वर में श्रीमद् राजचन्द्र की वाणी): प्रवक्तावाणी (पुरुष-स्वर में श्रीमद् राजचन्द्र की वाणी): "वही.... बिलकुल वही.... यह वही आत्मार्थी है कि जिस की मैं प्रतीक्षा में था....." (वाद्यसंगीत) प्रति-ध्वनि : (बड़ी आवाज़) "वही... बिलकुल वही... यह वही आत्मार्थी है कि जिस-की मैं प्रतीक्षा में था...." ( वाद्यसंगीत) प्रवक्ता-वाणी (स्त्री स्वर): (स्वप्न छायादृश्य क्रमशः समाप्त । अंधेरा, मंद मंद प्रकाश....)
यह नौजवान आत्मार्थी बैरिस्टर, यह होनहार-अहिंसक शेर उन दिनों इस इडर से हज़ारों मील दूर था.... दूर.... सागर के उस पार.... अफ्रीका के अंधकार भरे जंगलों में ।
(सागर के मौजों का और भयानक जंगल की आवाज़ों का effect) प्रवक्ता-वाणी (पुरुष स्वार) : (अंधकार : वाद्य संगीत)
यह अफीका हैं... वही अंधकार भरा काला काला खंड..... ! अंधकार.... असमानता.... अन्याय... शोषण... और अत्याचार से भरा अंधार-खंड़ !! यहाँ के दिल के भोले लेकिन चमड़ी के काले लोगों के नसीब में यह अंधकार ही शेष है। दिल के काले लेकिन चमड़ी के उजले इन्सानों ने इन काली चमड़ी के निवासियों को अत्याचारों के काले अंधेरे गड्डे में ही ढकेले हुए रखे हैं। (काले उसी लोगों की आकृति में और आर्तनाद) प्रवक्ता-वाणी (स्त्री स्वर) : अंधकार के गर्त में खाँच हुए इस काले लोगों का दर्द एक 'काला' आदमी महसूस कर रहा था। वह वही अहिंसक शेर था, जो शक्तिमान होते हुए भी स्वेच्छा से सितमों को सहन कर रहा था और अंधेरे के बीच से मार्ग खोज रहा था।
(अंधकार के बीच मार्म खोजती हुइ एक आकृति और पार्श्वगीत) पार्श्वगीत ( पुरुष स्वर):
"प्रेमन ज्योति तारो दाखवी मुज जीवनपंथ उजाळ, दूर पड्यो निज धामथी हुँ ने घेरे धन अंधार, मार्ग सुझे नव घोर रजनीमां निज शिशुने संभाळ.... मारो. (दूर एक प्रकाश दिखाई देता है) डगमगतो पग राख तुं स्थिर मुज, दूर नजर छो न जाय, दूर जोवा लोभ लगीर न, एक डगलुं बस थाय, मारो.
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