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Second Proor Dr. 23-5-2017 - 20
• महासैनिक .
अंक-२ दृश्य : तीसरा
जनरल (स्वप्न से जागकर, कुछ भयभीत, अपने पलंग के बाहर खिड़की की ओर देखकर)"शेर... शेर... बाघ बाघ..." सिपाही (बाहर पेहरे पर से दौड़े आकर): .... क्या है, क्या है साहब ? कोई सेवा... ? जनरल : (स्वस्थ होकर) : कुछ नहीं, तुम जा सकते हो... (सिपाही सॅल्युट कर बाहर जाता है। जनरल स्वगत बोलता है-) ओह ! वह सिर्फ सपना ही था !! अपने को ही शोभा दें ऐसी दिखती है गांधी के अहिंसक मार्ग-दर्शक की और गांधी जैसे अहिंसक सैनिक की बात । हाँ, यह अगर सही हो तो बड़े ही ताज्जुब की बात है कि... वाघ जैसे क्रूर हिंसक जानवर भी किसी योगी के सामने कूत्ते की तरह बैठ जायें, लेकिन इसमें या तो सरासर झूठ है, या कोई जादू ! ( उठता है, टेइप रिकार्डर चालु कर मुँह धोता है। टेइप रिकार्डर से गांधीवाणी सुनाई देती है-) गांधी-वाणी :
"अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः".
भारत के ऋषियों ने यह अपने अनुभव से कहा है कि जहाँ अहिंसा की प्रतिष्ठा होती है, अहिंसा में निष्ठा होती है, वहाँ सामनेवाला अपना स्वभावगत वैर भूल जाता है, चाहे वह फिर हिंसक पशु भी क्यों न हो।"
(जनरल चौंकता है और टेइपरिकार्डर बंद कर, खिड़की से बाहर देखकर सोचता हुआ बोलता है -) जनरल : तो क्या गांधी के मार्गदर्शक ने सचमुच ही बाघ-शेर को वश किया था? उसमें कोई झूठ या जादू क्या नहीं था? क्या वह सिर्फ प्रेम और अहिंसा की निष्ठा का ही प्रभाव था..... ? (घूमता है -) मार्शल : (प्रवेश करते हुए) "गुड मोर्निंग, सर ! क्या मैं आ सकता हूँ अंदर ?" जनरल : वॅरी गुड मोर्निग मार्शल, कम इन, बेशक कम इन । मार्शल : कहिये साहब ! रात नींद कैसी आयी? मैं तो आप को नींद आती देख किताब आधी छोड़कर ही चला गया था - जनरल : तुमने ठीक ही तो किया था। नींद तो मुझे अच्छी आ गई । इतना ही नहीं, तुम जो पढ़ रहे थे उसके सिलसिले में मैंने एक ख्वाब भी देखा ।
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"अहिंसा.... वैरत्यागः ।" : पातंजलयोगदर्शन ।
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