________________
Second Proof Dt. 23-5-2017 : 17
• महासैनिक.
"शत्रु मित्र प्रत्ये वर्ते समदर्शिता, मान अमाने वर्ते ते ज स्वभाव जो, जिवित के मरणे नहीं न्यूनाधिकता, भय मोक्षे पण शुद्ध वर्ते समभाव जो..... । . अपूर्व अवसर.....। "एकाकी विचरतो वळी स्मशान मां, वळी पर्वतमा वाघ सिंह संयोग जो अडोल आसन, ने मनमा नहीं क्षोभता, परम मित्रनो जाणे पाम्या योग जो..... अपूर्व अवसर..... ।
(- श्रीमद् राजचन्द्र) प्रवक्ता-वाणी (स्त्री-स्वर) : यह है आत्मा के आराधक, सत्य-अहिंसा के साधक और गांधी के मार्गदर्शक श्रीमद् राजचन्द्र : अकेले और ध्यानस्थ । और ये हैं इडर की एकान्त, नीरव पहाड़ियाँ...! यहाँ न इन्सान की बस्ती है, न दूसरे पशु पंछियों की ! बस्ती है तो कुछ वाघों की, जिन की दहाड़ (गर्जना) कभी कभी यहाँ के सन्नाटे में गूंज उठती है
(बाघ की दहाड़..... वातावरण में प्रतिध्वनियाँ ।) पार्श्वगीत-पंक्ति : (पुरुष स्वर)
"एकाकी विचरतो वळी स्मशानमा,
वळी पर्वतमां वाघ-सिंह संयोग जो....." प्रवक्ता-वाणी (स्त्री स्वर):- ये रहे वे वाघ-खूखार और क्रूर । लेकिन इनको भी इस साधक ने मित्र बनाया है - पार्श्वगीत-पंक्ति (पुरुष स्वर):
"अडोल आसन ने मनमां नहीं क्षोभता, परम मित्रनो जाणे पाम्या योग जो....."
(स्वप्न दृश्य से वाघों का चले जाना । अंधेरे के बाद अकेले ध्यानस्थ श्रीमद् राजचन्द्र का और बाद में कुछ क्षणों के लिए गांधीजी का दिखाई देना-नौजवान बैरिस्टर के रूप में ।) प्रवक्ता-वाणी (स्त्री स्वर): हिंसक बाघ जैसे मित्रों के बीच अहिंसा की साधना करनेवाले इस साधक पुरुष की अब एक दूसरे मित्र से भेंट होनेवाली थी। यह मित्र थे एक होनहार शेर.....( वाद्यसंगीत)
एक दिन की बात है।
(17)