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Second Proof Dt. 23-5-2017 - 3
• महासैनिक .
प्रवक्ता (पुरुष-स्वर):
"कबरें सारी भर चुकी हैं। मुर्यों को अब न दफ़नाने की जगह है, न जलाने की... !! बस करो, अब बस... !!! (बम की आवाजें) प्रवक्ता (स्त्री-स्वर):
००००० बम बंद नहीं हो रहे... कोटि कोटि इन्सानों को वे जिंदा जलाते जा रहे हैं......
(मंच पर एक घायल सैनिक की आह भरी आवाज़ । दूसरी ओर रहे हुए बूढ़े बाबा का उस ओर जाना, टोर्च से प्रकाश बैंक कर उसे खोज निकालना...) सैनिक : "आमीन !... आमीन... ! पानी..." बूढ़े बाबा : (मुर्यों के ढ़ेर के बीच, सैनिक के पास जाकर-बैठकर)
आह... ! (सहानुभूति से, सर पर हाथ फेरते हुए और मुँह में पानी डालते हुए) पीओ मेरे प्यारे बेटे, पीओ यह पानी..... सैनिक : (पानी पीकर, बाबा की ओर प्यार भरी नज़र से देखता हुआ, थोड़ा-सा बोलने की व्यर्थ कोशिश करता हुआ मर जाता है - पश्चाद्भू में वाद्य संगीत ) "आ...मी...न..... ! ....." ( मरता है । करुण स्वर में वायलिन) बूढ़े बाबा : (उसके बहरे पर आँसू टपकते हैं। प्रार्थना के भाव में उसके शव पर कपड़ा ओढ़ाता है) खुदा तुम्हें अमन वो, मेरे बेटे !(उठता है, लंगड़ाता चलता हुआ...)..... कब तक ये सर्वसंहारक युद्ध, कब तक...? ( बाबा को अपने घावों का गहां दर्द होता है, हाथ छाती के घावों पर रखता है, थोड़ा सा चलता है कि अचानक एक अमरिकी जनरल अपनी शांत अवकाशी छत्री-पेरेश्युट-से वहीं उतरता है- मंच पर ऊपर से उतर कर - बाबा के 'कब तक' शब्द के ठीक बाद । उसी के अनुसंधान में वह प्रत्युत्तर देता है - अमरिकी जनरल : विनाश होने तक, हमारे देश के दुश्मनों का पूरा खात्मा होने तक... ! (क्रूर हँसी हँसता है, बाबा उसे देखे रहता है)... लेकिन ठहरो, हैन्डज़ अप... तुम कौन हो और यहाँ, इस युद्धस्थल पर क्यों आये हो... ? बूढ़े बाबा : मैं यहाँ आया हूँ, साहब, आप जैसे सरदारों से यह पृछने कि- (रुककर ) और मैं समझता हूँ कि आप, आप शायद..... अमरिकी जनरल : अमरिकी सेना का जनरल (मूछों पर ताव देते हुए गर्व से ), तीसरे वर्ल्डवॉर का विजयी हीरो... मेरा नाम शायद तुमने सुना ही होगा ?