Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिपि का आविष्कार (३) भाव-प्रकाशक लिपि-किसी भाषा अथवा लिपि के इतिहास में बच्चों का भाषार्जन करना, असभ्य तथा जंगली जातियों की लिपियों का ज्ञान प्राप्त करना, इत्यादि बहुत सहायक होते हैं। हम देखते हैं कि छोटे बच्चे चित्र-रचना (Picture composition ) में चित्रों द्वारा पूरी कहानी बना लेते हैं। इसी प्रकार जब मनुष्य नकाशी अादि करने लगा और चित्रकला की उन्नति हो गई, तो भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्रों द्वारा परस्पर विचार-विनिमय होने लगा। ये चित्र प्रायः शिलाओं, पेड़ की छालों तथा जानवरों की खालों, हड्डियों, सींचा, दाँतों आदि पर बनाये जाते थे। अब भी अनेकों चित्र कैलीफोर्निया की घाटी तथा स्काटलैंड में पत्थरों पर, ओहियो रियासत में पेड़ की छालों पर, लैपलैंड में ढीलों पर तथा औवर्न (फ्रांस ) में सींचों पर खुदे हुए पाए जाते हैं। प्रारम्भ में एक चित्र द्वारा सम्पूर्ण घटना का बोध होता था। इस प्रकार की घटना-प्रकाशक चित्र-लिपि अमरीका के अादि तिवासियों में प्रचलित थी। तत्पश्चात पृथक-पृथक वस्तुओं से उत्पन्न भावों के लिए एक-एक चित्र-संकेत ( Idtograph) आने लगा। इस प्रकार की भाव-बाधक चित्र लिपि मैक्सिको तथा मिश्र के आदि निवासियों में प्रचलित थी। बाद में जब संवाद समझने में कठिनता हुई और कभीकभी विपरीत समाचार गृहीत हुए, तो एक-एक मूर्त अथवा अमूर्त पदार्थ के लिए एक-एक भाव चित्र आने लगा, उदाहरणार्थ प्राचीन चीनी चित्र लिपि में पेड़ों से 'बने', दो मिले हुए हाथों से 'मित्रता' आदि का बोध होता था। कालान्तर में ये चित्र संक्षिप्त होकर सांकेतिक चिह्न मात्र रह गए। उदाहरणार्थ प्रोफैन्द (Grotefend) के मतानुसार रोमन अंक प्राचीन काल में भाव चित्रों के द्योतक थे, यथा I, II तथा III अंगुलियों के द्योतक. V अँगूठे और उसके पास की अँगूली द्वारा बनने वाले कोण For Private And Personal Use Only

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