Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिपि का आविष्कार संकेत 'वंशी' का बोध कराने के लिए भाव-बोधक चित्र-संकेत है और 'अच्छाई का बोध कराने के लिए भाव-बोधक प्रतीक है। फिर वही 'यथासम्भव' के अर्थ में ध्वनि-बोधक उपसर्ग 'नेफर' बना और अन्त में 'ने' का बोध कराने के लिए आक्षरिक संकेत बन गया ( ने 'नेकर' आ आद्यक्षर है)। (ग) आद्यध्वनि (व्यंजन) मूलक लिपिः--जव मानसिक शक्ति का अधिक विकास हुआ और शब्दों तथा अक्षों की ध्वयनियों का अंशतः विश्लेषण होने लगा तो प्रत्येक प्राय व्यञ्जन के लिए एक पृथक सांकेतिक चिह्न प्रयुक्त होने लगा। इन आद्य व्यञ्जनों का पृथक्करण भी आद्य अक्षरों की भांति ही हुआ होगा। सम्भवतः प्रारम्भ में जो वस्तु जैसी होती थी उसकी आकृति के अनुकरण पर वैसा ही चिह्न उसके आदि व्यञ्जन के लिए आने लगा, उदाहरणार्थ ब्राह्मी में ध का रूप धनुषाकृति के समान नं० २६, क का कातिरिका के समान +, च का चमसा के समान नं० २७, व का वीणा के समान नं० २८, त का ताड़ के समान नं० २६, ग का गगन चिन्ह के समान नं०३० था, अरबी में AS आदि के प्रारम्भिक रूप क्रमशः -- (जमल = ऊँट) की गर्दन, ८, (बैत= घर ) के चिन्ह, - (कफ = हथेली) के चिन्ह 5 (ऐन = आँख) के चिन्ह .. (माए = जल ) के चिन्ह के समान थे। इसी प्रकार अंगरेजी में A B DPM Q R आदि क्रमशः उकाव, बगुला, हाथ, मिस्री वरी, मूलक ( उलूक), कोण, मुंह आदि के मूल चित्रों से बने हैं (अंगरेजी अक्षरों का निकास-चित्र देखो)। M में तो उल्लू का रूप अब भी स्पष्ट लक्षित होता है, M की दोनों चोटियाँ उल्लू के दोनों कान, बीच की नोक चोंच और पहली सीधी लकोर वक्षःस्थल की द्योतक हैं। मिस्त्री-भाषा में उलूक को मूलक कहते हैं। प्रारम्भ में उलूक का चित्र मूलक द्योतक भाव चित्र रहा होगा जो For Private And Personal Use Only

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