Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 80
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिन्दी तथा अन्य लिपियाँ है । यदि शिरो भाग की रेखाएँ निकल जाएँ तो हिन्दी की लेखन गति उदू तथा रोमन से कहीं अधिक हो जाय, परन्तु ऐसा करने में उसकी निश्चयता को धक्का लगेगा और अनेकों वर्गों में गड़बड़ी हो जायगी उदाहरणार्थ ध घ, भ म, र व ख, में कोई भेद न रहेगा । निश्चय त्वरा लेखन की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण गुण है, उसका हास ठीक नहीं । अतः हमको सिरबन्दी हटाने के पूर्व घ ध म भ आदि वर्गों के रूपों में परिवर्तन करना पड़ेगा। (ख) हिन्दी तथा बङ्गला, गुरुमुखी, गुजराती, मराठी आदि लिपियाँ:--हिन्दी तथा मराठी वर्णमाला तो एक सी हैं ही। केवल अछ म ण भ ल श के रूपों में थोड़ा सा भेद है और ड ढ ध्वनि संकेतों का मराठी में अभाव है। (देखो वर्णों का कारण लिपि में वर्णो की तीन श्रेणियाँ ( stories ) हो जाती है अर्थात् एक पंक्ति में तीन पक्तियाँ ऊपर की मात्रा वाली, मध्य की वर्ण वाली तथा नीचे की मात्रा तथा संयुक्ताक्षर वाली हो जाती हैं, जिससे लिखने के अति. रिक्त पढ़ने में भी अधिक देर लगती है । यदि ये मात्राएँ तथा चिन्ह वर्णो के सामने लगाए जाय जैसे ग, रु. पूजा, कटषि, इत्यादि, तो उक्त दोष दूर हो सकता है। गुजराती तथा मराठी में तो इस प्रकार के कुछ चिह्न हैं भी जैसे रेफ (') का चिह्न (") इस प्रकार है यथा कर्म, दुर्दशा आदि क्रमशः कम्म, दुग्दशा की भाँति लिखे जाते हैं। हिन्दी में भी कुछ विद्वान् अनुस्वार ( ) चन्द्र बिन्दु () हल चिह्न (.) को सशोधित रूप में वर्णन के सामने लगाने के पक्ष में हैं यथा पंच, काँटा, चड्ढा, उद्गम श्रादि क्रमशः ५०च का० टा चड ढा, उद-गम आदि की भाँति लिखे जाने चाहिये, तदनुसार मेरो समझ से तो संयुक्ताक्षर भी ऊपर नीचे लिखने के स्थान में उक्त हलन्त अथा संयोजक चिन्ह (-) लगाकर बराबर बराबर ही लिखने गहिए जैसे बुड्डा, विट्ठल आदि के स्थान में क्रमश बुड ढा, विट-ठल आदि; परन्तु इतना ही पर्याप्त नहीं है। For Private And Personal Use Only

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