Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 78
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिन्दी तथा अन्य लिपियाँ चाहिए । यही कारण है कि बच्चे प्रायः इस प्रकार लिखा करते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ शब्द ऐसे भी हैं जिनके दो-दो रूप हैं जैसे हुवा, हुआ, जावेगा जायगा, लिये लिए, गई गयी इत्यादि । मेरी ममझमें तो जैसा बोला जाय वैसा लिखा जाय । इसमें गड़बड़ का कोई काम ही नहीं। हम प्रायः हुआ, जायगा, लिए, गई आदि बोलते हैं. अतः यही रूप अपनाने चाहिए । उक्त दोएक साधारण कठिनाइयों के होने पर भी हिन्दी उर्दू तथा रोमन की अपेक्षा अधिक सरल है। (४)सौन्दर्यः-अशोक कालीन वणों में सिर-बन्दी नहीं लगाई जाती थी, परन्तु बाद में सौन्दर्य वर्द्धनार्थ वर्णों के ऊपर उठी हुई रेखाओं के सिरों पर पगड़ी की भाँति कुछ छोटी रेखाएँ लगाई जाने लगी जो कालान्तर में आड़ी रेखाओं में परिवर्तित हो गई। इससे अशोक कालीन वर्गों की अपेक्षा आधुनिक वर्ण अधिक सुन्दर हो गये । इस सिरबन्दी के कारण ही हिन्दी लिपि उर्दू तथा रोमन से कहीं अधिक सुन्दर प्रतीत होती है। इस सुन्दरता के परिमाण में इतना अन्तर है कि प्रायः लोग हिन्दी के सम्मुख उर्दू को चींटे की टाँगें और रोमन को चीत मकोड़े कहा करते हैं। (५) त्वरा लेखन-किसी लिपि में निश्चय तथा उपयोगिता के पश्चात मुख्य गुण त्वरालेखन है। सब से शीघ्र वह लिपि लिखी जायगी जिसमें कम से कम लेखनी उठानी पड़े जैसे उर्दू तथा अंगरेजी; परन्तु इसके यह मानी नहीं हैं कि उर्दू अथवा रोमन हिन्दी से शीघ्र लिखी जा सकती है या हिन्दी की अपेक्षा अच्छी है। त्वरा-लेखन के साथ ही साथ निश्चितता तथा स्थान भी किसी लिपि के आवश्यक अंग हैं। यद्यपि उर्दू में हिन्दी की अपेक्षा कम स्थान घिरता है, परन्तु अनिश्चितता अधिक है। रोमन में यद्यपि लेखनी कम उठानी पड़ती है और लेखक क For Private And Personal Use Only

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