Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 77
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिपि-विकास कठिन है। यद्यपि रोमन वर्णभाला देखने में सरल प्रतीत होती है, परन्तु वर्गों के मिलाने में बच्चों को कुछ कठिनाई अवश्य होती है, विशेषतः m तथा u के किसी वर्ण में मिलाने में । रोमन में छोटी-बड़ी और लिखने की तथा किताबी चार प्रकार को वर्णमाला होती है । यद्यपि छापे की (किताबी) वर्णमाला में ag आदि दो एक वर्ण, कठिन अवश्य हैं, परन्तु शेष लिखने के वर्षों से सरल प्रतीत होते हैं जैसा कि इससे प्रकट है कि प्रायः मनुष्य छापे के f kp r sx y तथा A B D E H I K L P Q R S TZ का लिखने में प्रयोग करते हैं। हिन्दी में ऋ झक्ष आदि वर्गों के लिखने तथा ड़ ण का भेद समझाने में : बच्चों को कुछ कठिनाई अवश्य होती है, तथापि उसमें उर्दू तथा रोमन की भाँति शोशों के घटाने बढ़ाने का डर नहीं है। इसके अतिरिक्त अद्ध र तथा ऋ को मात्रा स्वरूप किसी वर्ण के नीचे लगाने में, कुछ संयुक्ताक्षरों के लिखने में तथा र पर उ तथा ऊ की मात्रा लगाने में भी कठिनाई होती है। र तथा ऋ के प्रयोग में प्रायः बच्चे ही नहीं, बड़े भी यह सोचने लगते हैं कि 'ग्रह' 'प्रथा' आदि में 'र' लिखे अथवा 'ऋ' अर्थात् 'र' को नीचे लगाएँ अथवा वृक्ष, सृष्टि आदि की भाँति नीचे लटकाएँ। अन्य संयुक्ताक्षरों की भाँति द्+य तथा क्+त के वैज्ञानिक रूप दय तथा क्त अथवा क्त होने चाहिए और कुछ समय पूर्व यही प्रयुक्त भी होते थे, परन्तु इधर कुछ काल से इनके विकसित तथा संक्षिप्त रूप द्य तथा क्त का, जिनके लिखने में नए सीखतरों को कुछ कठिनाई अवश्य होती है, प्रचार अधिक हो गया है। उ तथा ऊ की मात्रा जिस प्रकार अन्य वर्गों में लगती है उस प्रकार र में नहीं लगती। अन्य वर्गों में मात्रा नीचे लगती है जैसे मुक्त, पूर्व, आदि में, परन्तु र में वह संश्लिष्ट हो जाती है जैसे रु रू में। रु तथा रू के वैज्ञानिक रूप र तथा र होने For Private And Personal Use Only

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