Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ भारत की प्राचीन लिपियाँ से मिलते हैं । अतः यदि ब्राह्मी सामी से निष्क्रमत होती, त उसके एक रूप से उधार लेती न कि भिन्न-भिन्न रूपों से थोड़ा थोड़ा। अतएव सागी की भिन्न भिन्न लिपियों ने ही ब्राह्मी से उधार लिया है न कि ब्राह्मी ने सामी से । बाह्मी का मूल अर्थ है 'पूर्ण' । कोई भी लिपि यकायक पूर्ण नहीं हो सकती, वह धीरेधीरे विकसित होकर कुछ समय पश्चात् पूर्ण होती है। भारत में ब्राह्मी ने पूर्व भी कोई अपूर्ण लिपि अवश्य रही होगी जिसका अाविष्कार सेमिटिक काल से सैकड़ों वर्ष पूर्व हो चुका होगा। यतः ब्राह्मी लिपि भारत की ही उपज है किसी विदेशी लिपि की नहीं । इसकी पुष्टि चीनी विश्व-कोप 'फा युअन चुलिन' से भी होती है, जिसमें ब्राह्मी लिपि ब्रह्मा नाम के भारतीय आचार्य द्वारा प्रवर्तित बताई गई है। यहाँ इसकी सुन्दरता के विपय में दो एक उद्धरण देना अनुचित न होगा। ओझा का कथन है कि यह भारतवर्ष के आर्यों का अपनी खोज से उत्पन्न किया हुअा मौलिक बाविष्कार है। इसकी प्राचीनता और साग-सुदरता से चाहे इसका कर्ता ब्रह्मा देवता माना जाकर इसका नाम ब्राझी पड़ा; चाहे साक्षर समाज ब्राह्मणों की लिपि होने से यह ब्राह्मी कहलाइ हो, पर इसमें संदेह नहीं कि इसका किनीशिअन से कुछ भी संबंध नहीं।' टेलर का कथन है कि, ब्राह्मी लिपि एक अत्यन्त पूर्ण और अद्वितीय वैज्ञानिक आविप्रकार है। एडवर्ड थामस का कथन है कि, 'ब्राह्मी अक्षर भारत वासियों की मौलिक उपज हैं और उनकी सरलता से बनाने वालों की बुद्धिमत्ता प्रगट होती है'।' लँसन आदि विद्वानों का कथन भी इसी सत्य की पुष्टि करता है। 'चूँकि इसका प्राचीनतम प्राप्य रूप काफी प्रौढ़ और किसी विदेशी उत्पत्ति से अपनी ओझा, 'प्राचीन लिपिमाला' धृष्ठ २८, टेलर, एल्फाबेट', भाग १ पृष्ठ ५० * हिन्दी विश्व-भारती' खंड २, पृष्ठ १०३६ For Private And Personal Use Only

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