Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - लिपि-विकाश स्वतन्त्रता प्रगट करता है, अतएव वर्षों पूर्व इसका निर्माण किया जाना ही संभव हो सकता है।' सारांश यह है कि ब्राह्मी लिपि जो साग-पूर्ण तथा सुन्दर है, भारतीय उपज है। जायसवाल के मतानुसार इसकी उत्पत्ति २००० ई० पू० में और बाभ्रव्य विषयक अनुश्रुति के अनुसार इसकी स्थापना १५५० ई० पू० में हो चुकी थी। अशोक के शिलालेखों से प्रकट है कि मौर्यकाल में इसका उत्तरी भारत तथा लंका में प्रचुर प्रचार था। 'पत्रवणा सूत्र' तथा 'समवायांग सूत्र' नामक जैन ग्रंथों में इसका नाम 'बंभी लिपि' दिया है और १८ लिपियों की नामावली में यह सब से ऊपर है। 'ललितविस्तर' की ६४ लिपियों में भी ब्राह्मी सर्व प्रथम नाम है। 'भगबनी सूत्र में प्रारम्भ में ही 'नमो बंभीए' शब्दों द्वारा इसकी बंदना की गई है। अतः इसका प्राचीन अथवा पाली नाम बंभी था और उस समय इसका बहुत आदर था । सब से प्राचीन प्राप्य लिपि अशोकी ब्राह्मी ३००ई० पू० की है । यद्यपि पिपरावा का मटके पर का लेख तथा बड़ली का खंड लेख ४००, ५०० ई० पू० के, हड़पा तथा मोहन-जोदड़ो की मुद्राएँ १००० ई० पू० की तथा हैदरावाद के बर्तनों पर के ५ चिन्ह संभवतः २००० ई. पू० के भी पाए गए हैं, जिनमें मात्राएँ स्पष्ट हैं और अशोकी लिपि के सादृश्य है, परन्तु बोधगम्य न होने के कारण इनसे अभी तक कोई महत्वपूर्ण परिणाम नहीं निकल सका है। (२) खरोष्ठी-खरोष्ठी का चीनी अर्थ है गधे के ओष्ठ वाली' और चीनी विश्व कोप 'फा-युअन-चुलिन' ने इसको भारतीय आचार्य खरोष्ठ द्वारा उत्पादित बताया है। बूहलर ने भी इसी मत को स्वीकार किया है। डा० प्रजिलुस्को के मतानुसार यह प्रारंभ में गधे की खाल पर लिखी जाती थी और खरोष्ठी खरपृष्ठी का अपभ्रंश है, परंतु बाद में अपने आविष्कर्ता For Private And Personal Use Only

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