Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत की प्राचीन लिपियाँ २५ खरोष्ठ ऋषि के नाम पर खरोष्ठी कहलाने लगी। इन मतों के अनुसार खरोष्ठी भी भारत की ही उपज ठहरती है, परन्तु इसके मानने में कई आपत्तियाँ हैं । प्रथम तो यह ब्राह्मी आदि भारतीय लिपियों की भाँति बाई ओर से दाई ओर को नहीं लिखी जाती हैं; द्वितीय इसमें संयुक्ताक्षरों की कमी और ह्रस्व-दीर्य भेद तथा मात्राओं का अभाव है जोकि भारतीय लिपियों की अपनी निजी विशेषता है तृतीय भारत का सब से प्राचीन साहित्य धर्म-ग्रंथ है, परन्तु खरोष्ठी का जो कुछ साहित्य उपलब्ध है उसका त्राह्मणों के धर्म-ग्रंथों से कोई संबंध नहीं है। इसके अतिरिक्त जिस प्रकार ब्राह्मी से उत्तरी भारत की आधुनिक लिपियाँ निष्क्रमित हुई हैं उस प्रकार खरोटी से पश्चिमोत्तर भारत की कोई लिपि नहीं निकली. प्रत्युत स्वयं इसकी भी तीसरी शताब्दी के पश्चात ही अवनति होने लगी। अतः न तो इसका भारतीय लिपियों से संबंध ही है और न यह भारत को उपज ही है। इसका निर्माण किसी विदेशी लिपि के आधार पर हुआ है। डा० सिलवान लेवी ने एक चीनी ग्रंथ के आधार पर इसका नाम खरोधी बताया है और इसको भारत के निकट-वर्ती खरोष्ट्र देश की उपज माना है। अतएव यह तो निश्चय है कि यह विदेशी लिपि है । अव प्रश्न यह है कि इसका उद्भव किस लिपि से हुआ और यह भारत में किस प्रकार आई। खरोष्ठी का प्रचार केवल पश्चिमोत्तर भारत में था जहाँ की सिन्धी, गल्वा, काफिर, ब्राहुई आदि भाषाओं तथा लिपियों पर अब तक सेमिटिक वर्ग की अरबी भाषाओं का प्रभाव पाया जाता है और चूँकि यह भी अरबी की भाँति दाई ओर से बाई ओर को लिखी जानी है, अतः इसकी उत्पत्ति सेमिटिक लिपि से हुई है। डाडवेल, भंडारकर आदि इतिहासज्ञों का मत है कि खरोष्ठी का निष्क्रमण अरमइक से हुआ है जो कि छठी शताब्दी ई. पू. For Private And Personal Use Only

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