Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिपि विकास आश्रम, शेष-शीर्ष तथा उसका पर्याय (अहिपति-मुख), सामवेद-शाखा। (१०,०००):-अयुत। (१,००,०००):-प्रयुत। (१०,००,००,०००):-अर्बुद । अब प्रश्न यह है कि अंकों की उत्पत्ति किस प्रकार हुई। यद्यपि यह बताना तो असम्भव है कि अंकों का आविष्कार कब और किसने किया, परन्तु इतना निश्चित है कि इनकी उत्पत्ति रेखालिपि से हुई है, उदाहरणार्थ १, २, ३, ४ क्रमशः -, =. =, + के विकसित रूप हैं। यहाँ अङ्कों के विकास कासंक्षिप्त इतिहास दे देना अनुचित न होगा। __ अंको का संक्षिप्त इतिहास ५:-इसका प्रथम चिह्न (-) ४ थी शताब्दी तक प्रयुक्त होता था और व्यापारी लोग तो अब भी - रकमें लिखने में 'एक आने के स्थान पर यही चिह्न काम में लाते हैं। यह रूप नानाघाट, नासिक आदि की गुफ़ाओं, आंध्र तथा अन्य क्षत्रिय राजाओं के शिला लेखों, मथुरा तथा उसके निकटवती प्रदेश से प्राप्त क्षत्रिय तथा कुशन राजाओं के शिलालेखों और मालवा. गुजरात, राजपूताना आदि में राज्य करने वाले क्षत्रिय राजाओं के सिक्कों, में उपलब्ध है। दूसरा रूपान्तर सुन्दरता लाने के कारण हुआ है। यह गुप्त वंशी राजाओं के शिलालेखों में, नेपाल से प्राप्त ८ वीं शता० तक के शिलालेखों में और काठियावाड़ के वल्लभी राजाओं के ६ठी से८वीं शता० तक के ताम्रपत्रों में प्राप्त है। यह रूप दूसरे रूप का ही रूपान्तर है। यह Bower __ * अंशत भोमाजी की पुस्तक 'नागरी अङ्क तथा अचर' के आधार पर For Private And Personal Use Only

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