Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिन्दी तथा अन्य लिपियां अंक-चिन्ह अप्राप्य हैं, अतः उनकी उत्पत्ति का ठीक-ठीक समय बताना तो कठिन है, परन्तु उनमें जिह्वामूलीय तथा उपध्मानीय वर्णों का होना यह प्रकट करता है कि संभवतः उनका आवि कार वैदिक काल में हुआ था । १ से ६ तक के अंक तो १५० ई० पू० तक पूर्ण हो चुके थे, परन्तु शून्य की योजना तथा दहाई से गणना करने का नियम पाँचवीं शताब्दी तक पूर्ण हुआ। तब से अंक लगभग उसी रूप में चले आ रहे हैं, केवल एक दो अंकों में सौन्दर्यार्थ एक-आध रेखा घट-बढ़ गई है जैसे तथा के स्थान में क्रमशः ८ तथा : लिखे जाने लगे हैं । छापे में ४, ५, ८, ६ क्रमशः ४, ५, ८, ६ की भाँति भी लिखे जाते हैं। हिन्दी तथा अन्य लिपियाँ किसी लिपि का श्रेष्ट अथवा निकृष्ट होना, निश्चय, उपयोगिता, सरलता, सौन्दर्य तथा स्वरालेखन आदि पाँच गुणों पर निर्भर हैं। लिपियों के तुलनात्मक अध्ययन में इन्हीं पाँच बातोंकी तुलना करनी चाहिए । हिन्दी लिपि का तुलनात्मक गौरव ज्ञात करने के लिए उसको उदू, रोमन, बँगला, गुरुमुखी, गुजराती, मराठी आदि मुख्य मुख्य लिपियों के साथ उक्त कसौटी पर कसना चाहिए। अाजकल भारतवर्ष की सर्वप्रमुख लिपियाँ तीन हैं हिन्दी, उद् तथा रोमन । हिन्दी विशेषतया उत्तरी भारत के हिन्दुओं तथा जमुना पार के कुछ हिन्दी भाषी मुसलमानों की लिपि है, परन्तु इधर स्वराज्य आन्दोलन के कारण इसका प्रचार दकन में मद्रास तर होगया है, सम्भव है किसी समय यह समस्त भारत में व्यवहत होने लगे। उर्दू, उत्तरी भारत के मुसलमानों तथा मुगल-काल के प्रभाव से कायस्थों की घरू तथा लिखने-पढ़ने की भाषा, हैदराबाद दकन की मुसलिम राज्य होने के कारण राज्यभाषा तथा उसके प्रभावसे बम्बई. मद्रास की व्यवहारिक भाषा, For Private And Personal Use Only

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