Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 69
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिपि विकास रोमन की भी यही दशा है। हिन्दी में हरे, धवन, ठेकोर आदि जो लिखे जायेंगे वही पढ़े जायेंगे, रोमन में Hare को हरे अथवा हेअर, Dhawan को धवन, धवान अथवा धावन, Thacore को ठेकोर, ठेकौर, टाकोर, ठकार, थैकौर, दैकौर आदि जो चाहे सो पढ़ सकते हैं। ____ कहाँ तक कहा जाय रोमन में हिन्दुओं के 'राम' और 'कृष्ण' और मुसलमानों के 'खुदा' तक बदल जाते हैं। रोमन में नजो 'अकार' है और न 'आकार,' अतः 'Narma' को 'राम' के अतिरिक्त 'आर-ए-एम-3' 'रैमे'. रेमे', 'रेमैं', 'रमा', 'रामा' आदि जो चाहे पढ़ सकते हैं। यही दुर् दशा 'कृष्ण' और 'खुदा' की भी है । 'राम' और 'कृष्ण' को रोमन में 'रामा' और 'कृष्णा पढ़ना तो एक साधारण सी बात है। 'भगवान तक को पुल्लिगा में स्त्रीलिंग बना देना", यह रोमन लिपि ही कर सकती है. अन्य नहीं। इसके अतिरिक्त की आँति तनिक से नुक्ते अथवा लकीर में कुछ का कुछ हो जाने का दोष मन में भी पाया जाता है, उदाहरणार्थ 'S' (स ) के कप तानक-मी वक्र रेखा लगा देने से वह 'श' (15) और नोच बिन्दु लगाने से 'प' (s), n न) में नीचे बिन्दु लगाने से 'रण' (), और । (र) में नीचे बिन्दु लगाने से ऋ (!) हो जाता है। अब यदि रेखा अथवा बिन्द लिखने से रह गया, तो 'श' अथवा 'प' केवल 'स', 'ण' केवल 'न' और ऋ केवल 'र' रह जाता है। इतना ही नहीं, अपितु वर्णों का कप तक निश्चित नहीं है। कोई-कोई वर्ण तो रोमन में विभिन्न विहान भिन्न-भिन्न प्रकार से लिखते हैं, उदाहरणार्थ 'श' की कोध महाशय '' इस प्रकार, वर साहब (6) इस प्रकार थोर विन्टरनिटस '' इस प्रकार लिखते हैं। अतः जब तक पाठक को सब विद्वानों के रूपों का पता न हो, वह पढ़ तक नहीं सकता। यह गड़बड़ी नित्य प्रति बढ़ती ही जा रही है, For Private And Personal Use Only

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