Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 73
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिपि विकास Parho (परहो), 2 खरगोश ) को Khargosh (खरगोश), आज्ञा को ajna (आना) इत्यादि लिखना पड़ता है। वास्तव में रोमन में विदेशी ध्वनियों के व्यक्त करने की की क्षमता ही नहीं है, संस्कृत फारसी आदि का साधारण से साधारण श्लोक अथवा नज्म भी रोमन में शुद्धता पूर्वक नहीं लिखा जा सकता । अति व्याप्ति के विषय में यह है कि अनेकों ध्वनियाँ ऐसी हैं जिनके लिए अनावश्यक रूप से कई-कई लिपिचिन्ह आते हैं जैसे फ के लिए i, ough, ph, द के लिए th, d, क के लिए , k, g, ch, ck, ज के लिए g, j, ज़ के लिये z, s, स के लिए 6, 8, व के लिए w, v, u (जैसे oudh में), इत्यादि । इनका काम कंवल एक-एक चिन्ह से भली भाँति चल सकता था। अतः उर्दू तथा रोमन दोनों में से एक भी अव्याप्ति तथा अतिव्यप्ति दोषों के कारण पूर्णतया उपयोगी नहीं कहीं जा सकती। हिन्दी में अपनी हो नहीं अपितु संस्कृत, अरबी, फारसी, अंगरेजी आदि प्रत्येक भाषा की ध्वनियों को व्यक्त करने की क्षमता है । पहिले फारसी, अरबी 5 अगरेजी a, 0, e, आदि के लिए कोई लिपि-चिन्ह न थे, परन्तु अब इनके लिए क्रमशः झ, अ, ग फ क ख ज, अं अँ आँ ए ए आदि आते हैं। इनके अतिरिक्त ड ढ व (उ) य () ओ ओ ह द आदि और भी अनेक नवीन चिन्ह प्रयुक्त होते हैं । वास्तव में हिन्दी लिपि इतनी पूर्ण तथा स्थिति स्थापक है कि किसी भी भाषा की ध्वनि क्यों न हो, वह हिन्दी के किसी न किसी वर्ण द्वारा उसमें कुछ रूपान्तर कर के भली भांति व्यक्त की जा सकती है । केवल बंगला अ और एक आध मराठी तथा मद्रासी ध्वनियों के सूचक चिन्हों का हिन्दी में अभाव है। अतः हिन्दी में व्याप्ति दोष नहीं के बराबर है और संस्कृत, फारसी, अगरेजी, आदि किसी भी For Private And Personal Use Only

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