Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिन्दी तथा अन्य लिपियाँ तथा क का जैसे pice तथा cat में, ch से च क तथा श का जैसे chain, monarch तथा machine में, d से ड द तथा ज का जैसे duty, Mahmud तथा education में, 3 से ग तथा ज का जैसे get तथा page में, 5 से स ज तथा (झ) जैसे Sat, is तथा measure में, 1 से दल तथा च का जैसे teacher, Bharat' तथा Portugese में, सेठ थ तथा द का जैसे Thakur', through तथा that में, 2 से अश्रा ए तथा ऐ का जैसे Americal, custi table तथा man में, 11 से अ ॐ का जैसे cuti put तथा tune में, 0 से श्रा तथा ओ का जस pot तथा nose में, Ougt: से फ तथा ओ का जैसे rough तथा though में, इत्यादि । हिन्दी में यह दोष नहीं है, उसमें १६ स्वर तथा ३३ व्यञ्जन होने के कारण एक लिपि चिन्ह से एक ही ध्वनि का बोध होता है और जो लिखा जाता है वही पढ़ा जाला है, उर्दू अथवा रोमन की भाँति लिखो कुछ और पढ़ो कुछ वाला हिसाब नहीं है । दो एक उदाहरणों से यह विषय स्पष्ट हो जायगा। हिन्दी में ऊधो ऊधो ही रहता है, परन्तु उर्दू में, बहुरूपिया है और अोधक, औधव, ऊधव, ऊधू, गोधू , औनू, गोधो, औधो श्रौधौ आदि जो चाहे तो हो सकता है । अनेकों हिन्दी शब्द ऐसे हैं जो उर्दू में भ्रान्तिरहित नहीं लिखे जा सकते ! इसके अतिरिक्त उर्दू में :'- - ---.) आदि कमशः लिखे तो लहजा हती उलामकान बाल्कूल, अल्लह जाते हैं परन्तु पढ़े लिहाजा, हत्तत्तइमकान, चिल्कुल, अल्ला जाते हैं । लिखने में तो उर्दू में और भी गड़बड़ है। उलिखने वाले प्रायः जेर, जबर, पेश, नुक्ता (बिन्दु आदि को उपेक्षा कर देते हैं। फल यह होता है कि लिखो आलू बुखारा(ii) और पढ़ो उल्लू विचारा। तनिक सी अमावधानी में 'खुदा' से 'जुदा हो जाता है For Private And Personal Use Only

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