Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क अकों का संक्षिप्त इतिहास ४६ Manuscript (बाबर साहब द्वारा खोज की हुई एक प्राचीन हस्तलिखित पुस्तक ) में उपलब्ध है। चौथा रूप तीसरे रूप से त्वरालेखन के कारण बना है । यह ११ वीं शता० की कई एक हस्तलिखित पुस्तकों में उपलब्ध है। शेष रूप चौथे रूप के ही रूपान्तर हैं। २ तथा ३:--इन दोनों अङ्कों के चारों रूपांतरों का इतिहास क्रमशः '१' के पहिले, दूसरे, तीसरे तथा चौथे रूपान्तरों के अनुसार ही है। ४:-यह रूप अशोक के कालसी के तेरहवें शिलालेख में उप. लब्ध है। दूसरा रूप नाना घाट आदि कई स्थानों में प्राचीन शिलालेखों में उपलब्ध है। तीसरा रूप क्षत्रिय राजाओं के सिक्कों में उपलब्ध है। चौथा रूप तीसरे का ही रूपान्तर है और त्वरालेखन के कारण बना है। यह १० वीं शता० के निकट की हस्तलिखित पुस्तकों में प्राप्त है। ५:- का पहिला रूप आंध्र तथा क्षत्रिय राजाओं के लेखों में और दूसरा गुप्त राजाओं के शिलालेखों में उपलब्ध है। तीसरा रूप नेपाल के शिलालेखों तथा प्राचीन पुस्तकों में उपलब्ध है। चौथा तथा पांचवा 5प वीं तथा १० वीं शता० के लेखों में प्राप्त हैं। ६:- का पहला रूप अशोक के सहस्राम तथा रूपनाथ के लघु शिलालेखों में उपलब्ध है। दूसरा रूप पहले का रूपान्तर मात्र है और मथुरा तथा उसके निकटवर्ती प्रदेश से प्राप्त कुशन राजाओं के शिला लेखों में उपलब्ध है। तीसरा रूप दूसरे से त्वरा लेखन द्वारा निष्क्रमित हुआ है और कन्नौज के परिहार राजा महिपाल के हड्डाला के ताम्रपत्र में ( ६१४ ई०) उपलब्ध है। * इन शिला लेखों तथा सिद्धपुर के शिलालेख में ६ अतिरिक्त ५० ओर १०० के अङ्क भी प्राप्त हैं, For Private And Personal Use Only

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