Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 38
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्राह्मी का विकास होकर प्राचीन नागरी हो गई, जिसमें 'अ, आ, घ, प, म, य, प, और स के सिर दो अंशों में विभक्त मिलते हैं।' १ इसके पूर्वी रूप से प्राचीन बँगला लिपि निकली जिससे आधुनिक बँगला, आसामी, मैथिली, उड़िया तथा नेपाली की उत्पत्ति हुई। मराठी. गोरखाली अथवा पर्वतिया, महाजनी ( मुड़िया) तथा कैथी भी प्राचीन नागरी के ही विकसित रूप हैं। गुजराती का निर्माण कैथी के आधार पर हुअा है। प्राचीन नागरी के ग्यारहवीं शताब्दी के रूप को मध्यकालीन नागरी कह सकते हैं। इसमें वर्णों के ऊपर की सिरवंदी के दोनों अंश मिलकर एक होगए। बारहवीं शताब्दी में वर्णों का वह रूप हो गया जो आजकल प्रचलित है। तब से लिपि में कोई विशेष परिवर्तन तो नहीं हुआ है, परन्तु कुछ साधारण परिवर्तन अवश्य हुए हैं । उदाहरणार्थ लगभग डेढ़ दो सौ वर्ष पहिले तक प्रत्येक वर्ण अथवा अक्षर पृथक्-पृथक् लिखा जाता था और शब्दों के बीच स्थान नहीं के बराबर छोड़ा जाता था, परन्तु इधर कुछ काल से दो वाँ अथवा अक्षरोंकं बोच स्थान नहीं छोड़ा जाता और दो शब्दों कबीच स्थान छोड़ा जाने लगा है अर्थान किसी शब्द के समस्त वर्गों पर एक सिरबंदी लगाई जाती है और दो शब्दों को सिरवंदियों के बीच स्थान छोड़ा जाता है । आजकल ड, स, अद्ध न, म तथा ण, तथा (चंद्रबिंदु) का प्रायः लोप सा होता जा रहा है और इनके स्थान में अनुस्वार () का प्रयोग बढ़ रहा है। अ, ण, ल, के स्थान मेंमराठी अथवा प्राचीन अ, ण, ल अधिक प्रचलित हो रहे हैं और सिरबंदी लगाने की प्रथा भी (प्रायः लिखने में ) उठो मी जा रही है। संभव है. किसी समय नागरी भी गुजरात की भाँति सिरमुण्डी हो जाय । यद्यपि भाषा तथा लिपि दोनों नितांत भिन्न हैं, परन्तु किसी भाषा के अधिक प्रचलित होने के कारण प्रायः उसमें तथा उसकी लिपि . ओझा, 'प्राचीन लिपिमाला', पृष्ठ ६० For Private And Personal Use Only

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