Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ܕ: लिपि विकास हुआ | आधुनिक काश्मीरी तथा टक्करी का निष्क्रमण शारदा से ही हुआ है । गुरुमुखी का निर्माण भी सिक्ख गुरु अंगददेव द्वारा शारदा के आधार पर ही हुआ है । नागरी को देवनागरी भी कहते हैं । 'नागरी' शब्द की व्युत्पत्ति के विषय में कई एक मत हैं । (१) आर. शामा शास्त्री के मतानुसार प्राचीनकाल में जब देवताओं की प्रतिमाएँ नहीं बनी थीं, उनकी पूजा से लिए उनके सांकेतिक चिन्ह भति-भाँति के त्रिकोणादि यंत्रों में, जिन्हें देवनागर कहते थे, लिखे जाते थे । कालान्तर में ये देव चिन्ह, उच्चारण ध्वनिसूचक लिपिचिन्ह बन गए, अतः यह लिपि देवनागरी कहलाई । ( २ ) इस लिपि के लिपि चिन्हों तथा तान्त्रिक चिन्हों में जो 'देवनगर' कहलाते थे. बहुत कुछ सादृश्य था, अतः इस लिपि का नाम देवनागरी पड़ गया । (३) प्राचीन काल के नागर ब्राह्मणों की लिपि होने के कारण यह नागरी कहलाई । ( ४ ) नगरों में प्रचलित होने के कारण इसका नाम नागरी हो गया, यद्यपि निश्चित रूप से तो नहीं कहा जा सकता कि वह लिपि देवनागरी अथवा नागरी क्यों कहलाई, परन्तु चूंकि अनेक विद्वान प्राचीन शिलालेखों के लिपि चिन्हों को 'देवताओं के अक्षर' 'सिद्धदायक मंत्र' 'गढ़े धन के बीजक' आदि कह कर उनका अध्यन करने से बचते रहे हैं, अतः संभव हैं इसका ' देव नगर' अर्थात देव-संकेतों अथवा तांत्रिक चिन्हों से कुछ सम्बन्ध हो और नागरी देव-नागरी का संक्षिप्त रूप हो । नागरी लिपि के दो रूप हैं, उत्तरी नागरी तथा दक्षिणी नागरी । दक्षिणी नागरी 'नंदि नागरी' भी कहलाती थी। संभवतः इसकी उत्पत्ति उत्तरी नागरी के पूर्व हुई थी । दक्षिण भारतमें इसके प्राचीन लेख ही नहीं पाए जाते, प्रत्युत यह संस्कृत ग्रंथों में अभी तक लिखी भी जाती है । उत्तरी नागरी की तीन अवस्थाएँ हैं, प्राचीन, मध्यकालीन तथा आधुनिक अथवा वर्तमान । दसवीं शताब्दी में कुटिल लिपि परिवर्तित Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

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