Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १ जयवन्दविद्यजं पर २ 'इति' भारत की प्राचीन लिपियाँ २१ विवेचना कुछ पहले शुरू हो चुकी और उसके समय तक पूरी परिपक्व तापा चुकी थी। इस प्रकार भारत युद्ध से सात पीढ़ी पहले अन्दाजन १५५० ई० पू० में - हमारी वर्णमाला स्थापित हो गई थी ।" " (१) ब्राह्मीः -- वेबर तथा वूहलर आदि पाश्चात्य विद्वानों का मत है कि ब्राह्मी का निर्माण फिनीशियन तथा अरमइक के आधार पर हुआ है। बृहत्तर का कहना है कि 'भारतवासियों ने १८ वर्ण समुद्री व्यापारियों द्वारा ८६० ई० पृ० फिनीशियन लिपि से, २ वर्ण ७५० ई० पू० मेसोपोटामिया से और २ वर्ष छठी शताब्दी ई० पू० में से लिए और इनके आधार पर ब्राह्मी का निर्माण किया । २ डा० आर. एन. साहा ने भी इसे अरबी से सम्बद्ध करने का प्रयत्न किया है। उनके कथनानुसार यह बनारस की ब्रह्म भट या बेताल भट लिपि थी और राजपूनाने के 'दस नामोव सन्यासी भाटों द्वारा प्रयुक्त होती थी । इसे भट लिपि अथवा ब्राह्मी लिपि भी कहते थे । इसमें भी अरबी की भांति ही मात्रा तथा मध्य स्वरों का अभाव था और केवल २८ वर्ण थे ! कोलब्रुक, कनिंघम, फ्लीट, ओझा, जायसबाल आदि इस भत से सहमत नहीं हैं, उन्होंने ब्राह्मी को भारत की ही उपज माना है। कनियम का सबसे बड़ा विरोध यह है कि ब्राह्मी संस्कृत, प्राकृत, पानी आदि भारतीय लिपियों की भाँति बाई ओर को लिखी जानी थी, परन्तु सेमिटिक उर्दू-फारसी की भाँति दाई ओर को लिखी जाती है। इस पर बृहतर ने 'एरण' के सिक्के द्वारा यह भी सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि ब्राह्मी भी पहले दाई ओर को लिखी जाती थी और इसके अवशेष चिन्ह अशोक के शिला लेखों में अत्र भी पाए जाते हैं । उदा • Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यक्ष की रूपरेखा' जिल्द १, पृष्ठ २११ १४ For Private And Personal Use Only

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