Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत की प्राचीन लिपियाँ १६ अपनाया, तदन्तर भारत की पार्श्ववर्ती भाषाओं पर भी इसका प्रभाव पड़ा जैसा कि इससे स्पष्ट है कि पारिभाषिक शब्दों के लिए उक्त सब भाषाओं ने सदैव संस्कृत का ही सहारा लिया है। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि पश्चिमोत्तर भारत की सिन्धी, काफिर, ब्राहुई आदि पर अरबी का बहुत प्रभाव पड़ा है, तदनुसार उनकी लिपि पर सेमिटिक का विशेष प्रभाव है। अतः आधुनिक लिपियों के. विशेषतः नागरी के, इतिहास की खोज करने से प्राचीन भारतीय लिपियों का ज्ञान प्राप्त हो सकता है। प्रागैतिहासिक काल की खोज करने में सब से बड़ी कठिनता प्राचीन सामग्री का अभाव है। यद्यपि बहुत कुछ सामग्री काल कवलित हो गई है, प्राचीन पुस्तकालय आदि विध्वंसकारियों द्वारा नष्ट हो चुके हैं, अनेक शिलालेख दीवालों में चुने जाने पर शहीद होने का दावा कर रहे हैं अथवा खुदे होने के घमण्ड में, सिलबट्टे का रूप धारण करके, छोटी-मोटी वस्तुओं (मसाले, पिट्ठी, आदि) को पीस कर चूर-चूर कर रहे हैं, ताम्रपत्रों ने बर्तनों का रूप धारण कर लिया है और नित्य प्रति कहारियों के कठोर हाथों के रगड़े खाते-खाते अपनी उपयोगिता खो बैठे हैं, सोने-चाँदी के सिके कोमल-कामिनियों के अंग का आभूषण हैं और उनके मृदुल स्पर्श का आनन्द ले रहे हैं, तदपि धरती माता ने अनेक खंडहर, शिखालेख ताम्रपत्र आदि बहुत से रत्न अपने गर्भ में छिपा रक्ख हैं जो प्राचीन स्मारक-रक्षा विभाग के प्रयत्न के फलस्वरूप समय-समय पर हमारे सम्मुख आते रहते हैं । लिपि-सम्बन्धी खोजों का श्रेय चाम विल्किस, जेम्स टाड आदि पाश्चात्य और हीराचन्द ओझा आदि पूर्वात्य विद्वानों को है। ___ अशोक से पूर्व की लिपि अप्राप्य है। अशोक के शिलालेखों से प्रकट होता है कि उस समय (लगभग २५० ई० पू०) भारत वर्ष में दो लिपियाँ प्रचलित थीं ब्राह्मी तथा खरोष्ठी अथवा For Private And Personal Use Only

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