Book Title: Lipi Vikas
Author(s): Rammurti Mehrotra
Publisher: Sahitya Ratna Bhandar

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत की प्राचीन लिपियाँ मराठी, गुजराती, पर्वतिया, उड़िया, बंगला, शारदा, कनड़ी, तामिल, गुरुमुखी, देवनागिरी आदि आधुनिक लिपियों की वर्णमालाओं का तुलनात्मक अध्ययन करने से हम इस महत्व पूर्ण परिणाम पर पहुँचते हैं कि नागरी, मराठी तथा पर्वतिया लिपियों में पूर्णतः सादृश्य है, आसामी तथा बंगला एक ही लिपि में लिखी जाती हैं, उड़िया वर्गों के सिर की घेरेदार पगड़ी, जो प्राचीन काल में लोहे की पुष्ट लेखनी से ताड़ पत्र पर लिखते के कारण उनके सिर पर रखनी पड़ती थी, उतार लेने से अनेक उड़िया वर्ण नागरी वर्गों के समान हो जाते हैं, नागरी वर्गा की सिर बन्दी हटा देने से वे गुजराजी सदृश हो जाते हैं. गुरुमुखी का. निर्माण शारदा के आधार पर, जिसका नागरी से बहुत सादृश्य है, हुआ है; दकन की तेलुगु तथा कनड़ो और तामिल तथा मलयालम में बहुत समानता है और द्राविड़ लिपियों का नागरी से भी सादृश्य है । इतना ही नहीं तिब्बती, बर्मी, स्यामी, काम्बोजी तथा मलय-द्वीपी लिपियों के वर्णों की भी नागरी से समानता है। सारांश यह है कि उत्तरी भारत की आधुनिक लिपियों, दक्षिणी भारत की द्राविड़ लिपियों तथा भारत के पार्श्ववर्ती देशों की लिपियों का नागरी से बहुत कुछ सादृश्य है। इन सब में वर्णमाला, स्वर-व्यंजन भेद, स्वर क्रम, व्यंजनों का वर्गीकरण, मात्रा नियम आदि सब लगभग एक से ही हैं. किसी में दो एक ध्वनियाँ कम हैं और किसी में अधिक, जो कुछ भेद है वह नाम का है । इतिहास इस बात का साक्षी है कि नागरी लिपि मूल आर्य लिपि से सम्बद्ध है, उसको बाद में द्राविड़ों ने For Private And Personal Use Only

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