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पहली पंक्ति गवाकर फिर प्रत्येक पंक्ति के साथ गीत की टेक गवाते हुए कहते
___ 'अरे ! बोध पाओ । तुम क्यों बोध नहीं पाते हो ? क्यों नहीं समझते ? इतने में भी तुम बिल्कुल मोहित मत होना | जो भी करने योग्य है, वह कर लो, क्योकि मृत्यु समीप आती जा रही है ।' । __यह क्या किया ! चोरों को आकर्षित करने के लिये कहा 'रास में युवतियों का समूह हो, तो मजा आ जाय' वास्तव में देखा जाय, तो यह कोई धर्म का वाक्य नहीं है । इसमें न तो धर्म की कोई हितशिक्षा है, न पाप दुगंछा है और न ही धर्म प्रशंसा है । फिर भी आगे कहे जाने वाले धर्म-उपदेश की ओर कान चौकन्ने कराने वाले ये वचन हैं; क्योंकि यदि पहले इतनी मनपसंद बात न कहेंगे, तो चोर आकर्षित हुए बिना सीधे ही धर्मवचन - वैराग्य वचन सुनने के लिये ही कहा तैयार होंगे? इसलिये उपरोक्त वचन धर्मश्रवण की ओर ले जाने वाला होने से उसे भी धर्मवचनधर्मकथा के रूप मे गिना है । __ छोटे बच्चे को कहिये - 'ले यह पेड़ा । यहाँ बैठकर खा ले ।' लड़का बैंठा, उसे पेड़ा देकर कहो - 'देख बेटे ! झूठ नहीं बोलना चाहिये । माता पिता के पाँव छूने चाहिये, प्रतिदिन भगवान के दर्शन करना ।' इसमें पहला वाक्य कैसा ? धर्म की ओर आकर्षित करनेवाला वाक्य, इसलिये इसे भी आकर्षणी धर्मकथा ही कहा जाएगा।
प्रत्येक स्थान पर गंभीरता से विवेक रखना चाहिये । ऊपर-ऊपर से देखकर तुरन्त जजमेंट या निर्णय नहीं दिया जा सकता कि यह ऐसा ही है ।
राजा को लात मारने वाले को इनाम :
दिवान का चुनाव करने के लिचे एक राजा ने कुछ युवकों की परीक्षा लेने के लिये पूछा - 'बोलो भाई! कोई मुझे लात मारे, उसे क्या सजा दी जानी चहिये?
तब ऊपर-ऊपर से देखकर एक ने कहा - 'उसे कोडे मारने चाहिये ।' दूसरे ने कहा - "उसे जेल में डालना चाहिये। तीसरा कहता है - अरे नहीं, दूसरों को भी इस उदाहरण से संभलने के लिये ऐसे को तो फांसी पर ही चढ़ाना चाहिये। इस प्रकार सबने अलग अलग जवाब दिये।
पुराना वृद्ध दिवान गंभीरता से, विवेक के साथ कहता है - 'महाराज ! उसे या तो सोने के खिलौने या हीरे का हार इनाम में दिए जाने चाहिये ।'
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