Book Title: Kavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 12
________________ प्रधान सम्पादक की कलम से हिन्दी भाषा के विकास में जैनाचार्यों, सन्तों एवं कवियों का योगदान प्रत्यधिक महत्त्वपूर्ण है । जन कवियों ने पहिले अपनश के रूप में प्रौर फिर हिन्दी के रूप में ८ वीं शताब्दि से ही रचनायें लिखता प्रारम्भ कर दिया था। राजस्थान के जैन ग्रंथागारों में उनके द्वारा निबद्ध हिन्दी ग्रंथों की हजारों पाण्डुलिपियों के प्राज मी दर्शन किये जा सकते हैं । लेकिन हिन्दी साहित्य के इतिहास में उनकी सबसे अधिक उपेक्षा हुई और प्राज भी उनको उत्तना स्थान नहीं मिल रहा है जितने स्थान की ये रचनाएं अधिकारी है। श्री महावीर ग्रंथ अकादमी की स्थापना समस्त हिन्दी जैन साहित्य को २० भागों में प्रकाशित करके उन्हें हिन्दी जगत् के समक्ष प्रस्तुत करने के उद्देश्य से की गयी है। यद्यपि २० भागों में समस्त हिन्दी कवियों एवं उनकी कृतियों को समेटना कठिन है फिर भी हिन्दी के प्रतिनिधि जैन कवियों का परिचय, मूल्यांकन एवं उनके काव्यों के मूलपाठ प्रकाशित किये जा सकेंगे ऐसा हमारा इढ़ विश्वास है। बुधजन ऐसे ही कवि हैं जिनके नाम से तो हम परिचित हैं। कभी-कभी उनके द्वारा रचित पदों को भी गाकर अथवा सुनकर हर्षित होते हैं लेकिन कवि के जीवन से एवं उसकी दूसरी कृतियों से हम प्रायः अपरिचित हैं। डा. मूलमन्द शास्त्री ने ऐसे कवि पर शोष कामं करके प्रकादमी के कार्य को हल्का कर दिया है । जिसके लिये हम उनके पूर्ण आभारी हैं। बुधमन जयपुर नगर के कवि थे। वे महापंडित टोडरमल एवं दौलतराम कासलीवाल के बाद में होने वाले कवि हैं। उनके समकालीन साथियों में पं. जयचन्द छाबड़ा, ऋषभदास निगोत्या, पं. केशरीसिंह, जोषराज कासलीवाल, पं. उदयचन्द, पं. सदासुन कासलीवाल, पं. मन्नालाल पाटनी, नेमिचन्द, नन्दलाल छाबड़ा आदि के नाम उल्लेखनीय है । ये सभी कवि जयपुर नगर के थे। जयपुर के बाहर राजस्थान, आगरा, देहली आदि में और भी कवि हुए हैं । लेकिन उनमें से किसी भी कवि ने बुधजन के बारे में कुछ नहीं लिखा । स्वयं बुषजन भी पं. जयचन्द छाबड़ा मनालाल पाटनी, नेमिचन्द के अतिरिक्त प्रपने दूसरे साथियों के बारे में मौन ही रहे। कवि का पूरा नाम बुद्धीवाद, बधीचन्द प्रथवा भदीचन्द था । बुधजन तो उन्होंने काष्यों में लिखने, पदो में लिखने के लिये रख लिया था। ये बज गोत्रीय खम्मेलबाल जाति के श्रावक थे। इनके पूर्वज पहिले प्रामेर में फिर सांगानेर में और

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