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गया है। द्वितीय अध्याय में अन्त: बाह्य प्रमाणों से पुष्ट कवि की जीवनी प्रस्तुत की गई है एवं कवि की समस्त रचनाओं की प्रामाणिकता की चर्चा की गई है।
तृतीय अध्याय में कृतियों का भाषा विषयक एवं साहित्यिक अध्ययन एवं वस्तु पक्षीय विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है । चतुर्थ अध्याय में हिन्दी साहित्य के विकास में बुधजन का योगदान हिन्दी के कतिपय कवियों की रचनामों से उनकी रचनाओं की तुलना एवं उनकी भक्ति भावना पर विचार प्रकट किये गये हैं।
___ शोष के समय न तो कवि का प्रामाणिक चित्र ही उपलब्ध हुमा और न उनकी मुत्यु की निश्चित तिमि ही उपलब्ध हुई। उनके जन्म स्थान के सम्बन्ध में भी विशेष जानकारी उपलब्ध न हो सकी। लेकिन कविवर बनारसीदास एवं पं० टोडरमलजी के समान कनि का जीवन अन्तद्धन्दमय नहीं रहा । वे एक साधारण धार्मिक प्रकृति के सदगृहस्थ व्यक्ति थे । बनारसीदासजी एवं टोडरमलजी की तुलना में उनकी रचनाओं में अध्यात्म का विस्तृत विवेचन नहीं है, परन्तु भाव की व्यंजना अवश्य सघन है, जिससे कविवर के व्यक्तित्व का सहज में ही प्राकलन किया जा सकता है ।
__ कविवर बुधजन की रचनाओं के लगभग २८० पृष्ठों का अध्ययन कर लिया गया है । उनका साहित्यिक जीवन विक्रम संवत् १८२० से १८६५ तक का उन्हीं की कृतियों के आधार पर निश्चित होता है । ७५ वर्ष के अपने साहित्यिक जीवन में उन्होंने लगभग १४ रचनाओं का सृजन किया जो एक महान् उपलब्धि है । प्रस्तुत शोष प्रबंध में कवि का जीवन-परिचम, व्यक्तित्व, साहित्यिक कृतित्व एवं जमकी प्रतिनिधि रचनात्रों पर प्रकाश डालते हुए हिन्दी साहित्य में उनके स्थान को मूल्यांकन करने का प्रयरन रहा है।
कवि के समस्त साहित्य का मनुशीलन करने के पश्चात् हम देखते हैं कि उनका समस्त साहित्य पद्यमय है एवं देशी भाषा में है। विविध रचनामों के अवलोकन से यह भी स्पष्ट जात हो जाता है कि उनका प्रतिपात्र मुख्यत: प्राध्यास्मिक विवेचन है। उनके मौलिक ग्रन्थ उनके अनुभवों तथा तत्वचितन को प्रतिफसित करते हैं । उनके टीका ग्रन्थ भी मात्र अनुवाद नहीं हैं, उनका चितन वहाँ भी जाग्रत है।
३३० भवानी रोड सनावद
मा. मूलचन्द शास्त्री