Book Title: Kavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 5
________________ { vi) प्रथम प्रकाशन पर मभिमत-साहित्य प्रकाशन के इस यज्ञ में कितने ही विद्वानों ने सम्पादक के रूप में और कितने ही विद्वानों ने लेखक के रूप में अपना सहयोग देना स्वीकार किया है । पर्व तक ३० से भी अधिक विद्वानों की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है । पकादमी के प्रथम भाग पर राष्ट्रीय एवं सामाजिक सभी पत्रों में जो समालोचना प्रकाशित हुई है उससे हमें प्रोत्साहन मिला है । यही नहीं साहित्य प्रकाशन की इस योजना को प्राचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज, एलाचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज एवं याचार्य कल्प श्री श्रुतसागर जी महाराज जैसे तपस्वियों का आशीर्वाद मिला है तथा भट्टारक बी महाराज श्री चारुकीति जी मुझनिद्री, एवं श्रवणबेलगोला, भट्टारक जी महाराज कोल्हापुर, डा. सत्येन्द्र जी जयपुर, पंडित प्रवर कैलाशचन्द जी शास्त्री, डा० दरबारीलाल जी कोठिया, डा. महेन्द्रसागर प्रचडिया, पं० मिलापचन्द जी शास्त्री एवं डा. हुकमचन्द जी भारिल्ल जैसे विद्वानों ने इसके प्रकाशान की प्रशंसा की है । भावी प्रकाशम- सन् १६७६ में ही प्रकाशित होने वाला सीसरा पुष्प "महाकवि ब्रह्म जिनदास एवं प्रतापकीति" की पाण्डुलिपि तैयार है और उसे शीघ्र ही प्रेस में दे दिया जावेगा । इसके लेखक डा० प्रेमचन्द रावको हैं। इसी तरह चतुर्थ पुष्प "महाकवि धीरचन्द एवं महिनन्द" वर्ष के अन्त तक प्रकाशित हो जाने की पूरी भाशा है। श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी को पंजीकृत कराने की कार्यवाही चल रही है। जो इस वर्ष के अन्त तक पूर्ण हो जाने की प्राशा है । अन्त में समाज के सभी साहित्य प्रेमियों से सादर अनुरोध है कि वे श्री महाबीर ग्रन्थ अकादमी के अधिक से अधिक सदस्य बन कर जैन साहित्य के प्रचार प्रसार में अपना योगदान देने का कष्ट करें। हमें यह प्रयास करना चाहिए कि ये पुस्तकें देश के प्रत्येक विश्वविद्यालय में पहुंचें जिससे वहां और भी विद्यार्थी जैन साहित्य पर शोध कार्य कर सकें। यही नहीं हिन्दी जैन कवियों को हिन्दी साहित्य के इतिहास में उचित स्थान भी प्राप्त हो सके। डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल निदेशक एवं प्रधान सम्पादक

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