Book Title: Kashayjay Bhavna Author(s): Kanakkirti Maharaj Publisher: Anekant Shrut Prakashini Sanstha View full book textPage 5
________________ 来来来来来来来来来来来来来来来来来来来然法象 कषायजथ-पाखमा * ही स्वस्थ मन का निवास होता है। जब शरीर रोगों का घर बनता है तब * | मनुष्य अपना मानसिक सन्तुलन भी खो देता है। कषायों के द्वारा उत्तेजित * हुए मनुष्य की मनःस्थिति विक्षुब्ध हो जाती है। इससे विचारशक्ति का हास | | हो जाता है। फलतः मनुष्य अच्छे और बुरे का निर्णय नहीं कर पाता। कषायावेग में मनुष्य के मन में जैसी भी सनक उठ जाती है. वह वैसा ही | कार्य कर बैठता है। हत्याएँ, आत्महत्याओं, कई उपद्रवों और दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण कषायों के द्वारा उद्विग्न हुई मनोभूमि ही होती है। आगम के मतानुसार यदि कषायों पर विजय प्राप्त कर ली है, तो साधना करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है और यदि कषायों पर विजय * प्राप्त न कर पाये तो अनेकों वर्षों तक की हुई सारी तपश्चर्या व्यर्थ है। इसी Rai बात को स्पष्ट करते हुए आचार्य श्री शुभचन्द्र जी ने लिखा है . यदि क्रोधादयः क्षीणास्तदा किं खिद्यते वृथा। तपोभिरथ तिष्ठन्ति तपस्तत्राप्यपार्थकम् || (ज्ञानार्णव- १९/७६) | अर्थात् - यदि क्रोधादि कषायों का क्षय हो गया है तो तय करना व्यर्थ है * और यदि क्रोधादि कषायों का क्षय नहीं हुआ है तो तप करना व्यर्थ है। आगम ग्रंथों में कषायों की हानि को प्रदर्शित करते हुए आचार्यों ने | उसके तीव्रतर आदि चार भेद किये हैं। इनसे क्रमशः नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति की प्राप्ति होती है। यतिवृषभ आचार्य के मतानुसार नरकगति में उत्पन्न हुए जीव के प्रथम समय में क्रोध कषाय का, तिर्यंचगति में उत्पन्न हाए जीव के प्रथम * K समय में माया कषाय का. मनुष्यगति में उत्पन्न हुए जीव के प्रथम समय में | मान कषाय का और देवगति में उत्पन्न हुए जीव के प्रथम समय में लोभ कषाय का उदय होता है। भूतबलि आचार्य के मतानुसार उपर्युक्त नियम IM नहीं है। उनका आशय है कि किसी भी गति के जीव को प्रथम समय में | | किसी भी कषाय का उदय हो सकता है। आगम में कषायों के स्वभाव, फल और वासनाकाल का जो वर्णन * पाया जाता है, उसे निम्नलिखित नक्शे के द्वारा समझना आसान होगा। IXXX X ***** * ** ** ** 米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米於米米米米米米米米米米米米米 米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米紫米米米 14Page Navigation
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