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मरमर
RANSARAN
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HAKKHEKHELKHATARA
| कषायजय-भावना करता है। इसतरह लोभी सत्कार्य नहीं कर पाता है।
दुःखं न जानाति न वेत्ति सौख्यं। हिताहितं लक्षयते न मूढः ।।
कालं बहुं यातमिहार्थलोलः। . क्षणेन तुल्यं मनुते हि लोभी ।।३६|| अर्थ - मूर्ख लोभी व्यक्ति न दुःख को जानता है, न सुख को जानता है। वह P हित और अहित को भी नहीं जानता है। उसका बीता हुआ समय एक क्षण
जैसा मालूम होता है। * भावार्थ - लोभ मनुष्य को इतना विवेकहीन बना देता है कि उसके चंगुल में * hd फँसा हुआ मनुष्य अपने विषय में कुछ भी चिन्तन करने में असमर्थ हो ।
जाता है। लोभी अपनी इच्छा का गढ्ढा भरने के लिए इतना बेभान हो जाता * है कि उसे अपना हित और अहित का ज्ञान ही नहीं रह पाता। वह अपने * | लिए सुखकारी वस्तुओं को दुःखदायक और दुःखकारी वस्तुओं को सुख
दायक मानता है। लोभ की पूर्ति में व्यतीत हुआ बहुत सा समय भी उसे * | क्षणभर-सा मालूम पड़ता है।
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米米津米米米米米米米米米米米米米米米米*※*※※※※※※*****
पीनाकस्य कथां निशम्य सुधियो ज्ञात्वा मृतिंचामरीं। दृष्टं तं कलहस्तकस्य निपुणं संचिन्त्य चित्ते पुनः || भव्याः श्री जिनशासने कृतधियो व्यावर्त्य चित्तेस्पृहां,
संसारोद्धवदुःखदानचतुरं लोभं त्रिधा मुञ्चतु ।।३७।। अर्थ - पीनाक की कथा को सुनकर दैवी स्वरूप को जानकर स्वहस्त की | निपुणता को देखकर फिर चित्त में विचार करके जिनशासन में स्थिर बुद्धि वाले भव्य जीव को मन, वचन और काय से लोभ का त्याग कर देना | * चाहिये। *भावार्थ - आगम में लोभ कषाय के विषय में पिण्याकगन्ध की कथा प्रसिद्ध ※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※