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कषायजय-भाधना कषाय आत्मा के वैरी हैं
नोश कषाय क्रोध समस्त दुर्गुणों का सम्राट है। इससे होने वाले तात्कालिक परिणाम भी इतने भयंकर होते हैं कि उन्हें देखकर जी काँप उठता है।
क्रोध का फल बताते हुए एक कवि ने लिखा है कि - गुस्से से तन दुर्बल बनता, लोही विषमय बन जाता। तेज चला जाता आँखों का, ज्ञानरहित मन बन जाता।। अकल न जाने कहाँ जाती है, ज्ञानी और गंवार की। छोड़ो क्रोध, लोभ, मद, माया, गलियाँ नरक द्वार की।।
क्रोध अग्नि से ज्यादा दाहक, शस्त्र से ज्यादा मारक और जहर से | * भी ज्यादा घातक होता है। पण्डितप्रवर आशाधर जी ने अनगार धर्मामृत में | लिखा है कि - क्रोध प्राणियों के अन्तरंग और बाह्य को ऐसा जलाता है।
कि उसका कोई प्रतीकार नहीं है। अतः क्रोध कोई एक अपूर्व अग्नि है। * बुद्धिमानों की भी चक्षु सम्बन्धी और मानसिक दोनों ही दृष्टियों का एकसाथ उपघात करने से क्रोध कोई एक अपूर्व अन्धकार है। जन्म
जन्मान्तरों में निर्लज्ज होकर अनिष्टों का करने वाला होने से क्रोध कोई Pal एक अपूर्व ग्रह या भूत है! उस क्रोध का विनाश करने के लिए उस |
क्षमारूपी देवी की आराधना करनी चाहिये जो जिनागम के अर्थ और ज्ञान के उल्लास का कारण है।
किसी भी विपरीत प्रसंग के उपस्थित होने पर क्रोध न करने के क्षणिक उपाय निम्नलिखित हैं . | १ . क्रोधियों की संगति नहीं करनी चाहिये। ।
२ - क्रोध का प्रसंग आने पर मौन धारण कर लेवें। अगर मौन रखना संभव | नहीं हो तो उस स्थान से दूर चले जाना चाहिये। | ३ - एक से सौ तक गिनती करने लग जाना चाहिये। *४ - ठंडा पानी पी लेना चाहिये। 来来来来来来来来来来为33张忠来来来来来来来来来来来
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