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कषायजय-भावना
यतः कषायैरिह जन्मवासे । समप्यते दुःखमनन्तपारम्।। हिताहितं प्राप्त विचारदक्षै
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रतः कषायाः खलु वर्जनीयाः ||४०||
अर्थ- कषायों के कारण मनुष्य इसी संसार में अनन्तबार जन्म लेता है, अनन्त दुःखों को प्राप्त करता है। अतः हित-अहित का विचार करने वाले चतुर व्यक्तियों को कषायों को छोड़ देना चाहिये ।
भावार्थ - कषाय संसार के समस्त दुःखों का एकमात्र कारण है। अतः विचारचतुर मनुष्य को कषायों का त्याग कर देना चाहिये ।
इति कनककीर्तिमुनिना कषायजयभावना प्रयत्नेन । भव्यजनचित्तशुद्ध्यै विनयेन समासतो रचिता ॥४१॥
अर्थ - इसप्रकार कनककीर्ति मुनि के द्वारा बड़े ही प्रयत्न से भव्य जीवों की चित्तशुद्धि के लिए कषायजय भावना ग्रंथ की संक्षेप से रचना की है।
।। इति कषायजयभावना चत्वारिंशत्समाप्तः ॥ इसप्रकार कषायजय-भावना चालीस श्लोकों में समाप्त हुई।
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