Book Title: Kashayjay Bhavna
Author(s): Kanakkirti Maharaj
Publisher: Anekant Shrut Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ . . . ॥ 晓来来来来来来来来来来来送来染来来来来来来来来举朱荣先来 कषायज्य-मावना 米米米米米歩米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米津米米米米米米米米米米 नो संवृणोति परिधानमपि स्वकीयं, भाण्डानि चूर्णयति हन्ति शिशून् प्रदुष्टः। स्वाल परं परिपत्यानि मुक्तकमा, कोपी पिशाचसदृशं स्वकमातनोति ||४|| अर्थ - क्रोध का उदय होने पर मनुष्य अपने वस्त्रों को नहीं सम्हाल पाता है। * बर्तनों को तोड़ता है। बच्चों को मारता है। अपने केशों को खोल देता है। अपना तथा दूसरों का अनादर करता है। इसप्रकार क्रोधी स्वयं को पिशाच के समान बना लेता है। भावार्थ - क्रोध का उदय होने पर मनुष्य पिशाच से ग्रस्त हुए पुरुष के समान आचरण करने लगता है। जैसे पिशाचग्रस्त पुरुष अपने वस्त्रों को नहीं सम्हाल पाता, हाथों में आयी हुई वस्तुओं को निर्दयतापूर्वक क्षति पहुँचाने लगता है, बच्चों को पीटने लगता है, बालों को खोल देता है अथवा अपना तथा दूसरों का अपमान करने लगता है, उसीप्रकार क्रोधी मनुष्य की | चेष्टाएँ होती है। 米米米米米米米米米法求求求求求求求求求求求求求求米米米米****米米米米米米米米米洋米米 कोपेन कश्चिदपरं ननु हन्तुकाम, तप्तायसं स परिगृह्य करेण मूढः । स्वंनिर्दहत्यपरमत्र विकल्पनीयं, किं वा विडम्बनमसौ न करोति कोपः ||५|| अर्थ - क्रोध के कारण किसी दूसरे को मारने की इच्छा करता हुआ वह | मूर्ख मनुष्य तपे हुए लोहे को अपने हाथों में ले कर स्वयं को जलाता है कि अन्य को यह विचारणीय है। यह क्रोध कौन-कौन सी विडम्बनाओं को नहीं करता है ? अर्थात् सभी विडम्बनाओं को करता है। भावार्थ - क्रोध के कारण मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है। क्रोध में उसे अपने भले बुरे का ज्ञान नहीं होता। वह ऐसा मानता है कि मैं दूसरों को ※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47