Book Title: Kashayjay Bhavna
Author(s): Kanakkirti Maharaj
Publisher: Anekant Shrut Prakashini Sanstha

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Page 20
________________ 法来决来来来来来来来来来来来来来, KAKKAKKARXKHAKKAKKAKE कषायजय-पावना * अर्थ - बुद्धिमानों का कथन है कि सज्जनों के श्रेष्ठ वचन अपार संसार * रूपी समुद्र को पार कराने वाले, पवित्र सुख एवं सिद्धियों को प्रदान करने वाने होते हैं। परन्तु अभिमानी उन वचनों को नहीं सुनता है। * भावार्थ - संसार अपार सागर है। इस सागर से पार होने के लिए सज्जनों * के वचन नौका के समान होते हैं। सज्जन लोग परहित की भावना से , सन्मार्ग का प्रदर्शन करते हैं। अभिमानी पुरुष उन पवित्र एवं योग्य वचनों * को नहीं सुनता है। यदि कदाचित् वे श्रेष्ठ वचन उसे सुनने में भी आ जाते हैं तो वह उन वचनों पर विचार नहीं करता है। 米米米米米米米米米米米米[米米米米米米米米米米米米 स्वबन्धुभिः सद्वचनैरुदारैः। सभाजनैर्ता बहुपण्डितपन!! विबोध्यमानोऽपि सहस्रशोऽज्ञ स्तथापि मानं न जहाति मानी ।।१७।। * अर्थ - अपने बन्धुओं, सभा के सज्जनों एवं अनेक विद्वानों के द्वारा परम एवं उदार वचनों से हजारों बार समझाया जाने पर भी मानी पुरुष अपने * मान को नहीं छोड़ता है। * भावार्थ - अभिमानी मनुष्य बहरा होता है। उसे परवचन सुनाई नहीं देते। | अतः अभिमानी को यदि बन्धुजन, सज्जन एवं विद्वानों के द्वारा भी समझाया जाये तो भी वह उन्हें नहीं मानता है। अपनी मनमानी की आदत न छोड़ | पाने के कारण वह सदैव दुःखी ही रहता है। न मानिनः केऽपि भवन्ति दासाः, न मित्रतां याति हि करि चदेव । निजोऽपि शत्रुत्वमुपैति तस्य, किं वाथ मानो न करोति नृणाम् ।।१८।। * अर्थ - कोई भी पुरुष मानी व्यक्ति की दासता को स्वीकार नहीं करता। ※※※※※※※※※※※※※円※※※※※※※※※※※※ ***********************※*※※※※※※米米米米米米米米米米米米米米

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