________________
采米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米
कषायजय-भावना
* क्या-क्या नहीं करता हैं ? अर्थात् सारे ही कार्य करता है।
भावार्थ - लोभी मनुष्य अर्थ के उपार्जन के लिए अतिशय व्यस्त रहता है। |
धनार्जन के लिए परिश्रम करते हुए वह रात भर राजा की सेवा में जागरण * करता है। शीत और उष्णता के विषयक अनेक कष्टों को सहन करता है। - अपने स्वामी का आदेश पाकर वह उसे प्रसन्न करने के लिए यथासंभव
कार्य करने के लिए तत्पर रहता है। इसप्रकार लोभी लोभ के वशीभूत | होकर नाना प्रकार के सन्ताप प्राप्त करता है।
来张书心法米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米
शेते नित्यं त्रुटितशटिते मञ्चके भग्नपादे | भुइको स्तोलं जदपि कुमित जीर्णम भुगतः ।। धत्ते शीर्णं मनमलिनितं वस्त्रखण्डं च कल्या
मेवं लोभी द्रविणमधिकं प्रत्यहं सञ्चिनोति ।।३१।। अर्थ - लोभी मनुष्य हमेशा टूट चुके हैं पैर जिसके ऐसी खाट पर सोता है। * भूख से पीड़ित हो कर सड़ा-गला अन्न खाता है। शरीर पर फटा हुआ मलिन **
वस्त्र धारण करता है। इसप्रकार लोभी प्रतिदिन अधिक से अधिक धन * एकत्र करता है। * भावार्थ - लोभी मनुष्य धन का उपयोग अपनी सुख-सुविधाओं के लिए भी | नहीं करता। धन को बचाने के लक्ष्य को मन में धारण करके वह टूटी हुई | खाट पर सोना, सड़ा-गला अन्न खाना, फटा हुआ मलिन वस्त्र पहनना आदि | जीवन पद्धति का अनुसरण करता है। अधिक से अधिक धन को एकत्र | करना ही उसका एकमात्र उद्देश्य होता है।
※※※※※※※※※※※※※※※米米米米※*※*※米米米米米米米米米米※米米米米米米米米米
जिनालयमनुत्तरं ननु न कारयत्युज्ज्वल जिनाधिपतिपूजनं न च करोति सत्संगमम् । ददाति च तपस्विनां प्रतिदिनं न दानं महद्,
हिरण्यमपि वर्धयन् मरणमेति लोभी जनः ।।३२।। ※※※※※※※※※※※※※Rど※※※※※※※※※※※※