Book Title: Kashayjay Bhavna
Author(s): Kanakkirti Maharaj
Publisher: Anekant Shrut Prakashini Sanstha

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Page 23
________________ ※米米米米米米米米米※※※※※※※※※※※※※米米米米米 कषायजय-भावना एक दूत पोदनपुर के नरेश बाहुबली के पास भी गया। उसने अपने | Ka आने का प्रयोजन महाराजा बाहुबली को बताया। दूत ने सचिनाय निवेद * किया कि “ हे देव ! आप चक्रवर्ती भरत को प्रणाम करके उनकी अधीनता | स्वीकार कर लीजिये।" बाहुबली ने उत्तर दिया कि " हे दूत ! बड़ा भाई नमस्कार करने के योग्य है, यह बात अन्य समय में अच्छी तरह समझ में | आती है परन्तु जिसने मस्तक पर तालवार रख छोड़ी है उसको प्रणाम करना कौनसी रीति है ? भरत को कहना कि अब हम दोनों का जो कुछ होगा, वह * युद्ध में ही होगा।" दूत ने भरत के पास आकर बाहुबली के सन्देश को ज्यों al का त्यों सुनाया। दोनों पक्षों में युद्ध की तैयारी होने लगी। A यथासमय युद्ध प्रारंभ हो गया। इतने में दोनों पक्ष के मन्त्रियों ने * विचार करके कहा कि दोनों चरम शरीरी हैं, अतः दोनों की कुछ भी हानि नहीं होगी। केवल युद्ध के बहाने से अनेक मनुष्यों का संहार होगा। अतः | * दोनों में धर्मयुद्ध ही होना चाहिये। मन्त्रियों के निर्णयानुसार दोनों में जलयुद्ध, | दृष्टियुद्ध और मल्लयुद्ध हुआ। तीनों में बाहुबली ने विजयश्री का वरण | किया। भरत ने अपना अपमान हुआ जान कर चक्ररत्न बाहुबली पर फेंक | दिया। देवोपनीत शस्त्र कुटुम्बी जनों पर सफल नहीं होते। अतः उस चक्र ने | बाहुबली की प्रदक्षिणा देकर वह उन्हीं के पास जा ठहरा। बाहुबली ने संसार * की असारता को जान कर राज्य का भार त्याग कर दीक्षा धारण कर ली। बाहुबली ने एकवर्ष उपवास करके खड़े होकर कठोर तपश्चर्या की।उनकी तपश्चर्या अद्भुत थी।परन्तु भरतेश्वर मेरे द्वारा संकलेश को प्राप्त हुआ है, यह विचार उनके मन में सदा ही बसा हुआ था। इस कारण से उन्हें | * केवलज्ञान की उत्पत्ति नहीं हो रही थी। जब चक्रवर्ती भरत ने आकर उनकी * पूजा की, तब उनके मन का यह विकल्प दूर हो गया तथा उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। तात्पर्य यह है कि इतना दिव्य तप भी उनके कैवल्य में तबतक | | सहायक नहीं बन सका, जबतक मन का अहंकार नहीं मरा। अतः सज्जनों को अहंकार सर्वदा के लिए छोड़ देना चाहिये। ※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※ 「※*※*※************深米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米 ************* ***********

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