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कवायजय- भावना
कोई उससे मित्रता नहीं करता। उसके स्वजन भी उसके शत्रु हो जाते हैं। मान मनुष्य का कौनसा अनर्थ नहीं करता है ? अर्थात् मान सभी प्रकार के अनथों को करता है।
भावार्थ - मानी पुरुष अवसर मिलने पर दूसरों की अवज्ञा करने में एक पल भी नहीं चूकता। उसकी चाकरी करने में लोग अपमान के भय से ग्रसित होते हैं। अतः कोई उसकी दासता करना पसन्द नहीं करता, उसका मित्र | बनना नहीं चाहता, स्वजन लोग भी उसके साथ शत्रुत्व धारण कर लेते हैं। इसप्रकार मानी सब तरफ से अपनी हानि कर बैठता है।
सर्वदा कलित तातवचोभ्यां । न्यायधर्मसमभावरतिभ्याम् ।। यत्कृतं भरतबाहुबलिभ्यां । मानदोष इति सोऽत्र जिनोक्तम् ||१९||
अर्थ - जिनेन्द्र प्रभु ने कहा है कि मान के दोष के कारण ही पिता के वचनों का पालन करने वाले, न्याय, धर्म और समानता के भाव में प्रीति करने | वाले भरत और बाहुबली ने जो कुछ किया वह सर्वविदित ही है।
भावार्थ भगवान आदिनाथ के शक्तिशाली, न्यायशील, पिता के आदेशों
का अक्षरशः पालन करने वाले भरत और बाहुबली इन दोनों पुत्रों में अहंकार के कारण हुए युद्ध ने उनके यश को कलंकित कर दिया। आचार्य श्री कुन्दकुन्द ने लिखा है
देहादिचत्तसंगो माणकसाएण कलिसिओ धीर । अत्तावणेण जादो बाहुबली कित्तियं कालं ।।
( भावपाहुड ४४ ) अर्थात् शरीरादिक से स्नेह छोड़ देने पर भी बाहुबली मान कषाय के कारण से कलुषित रहे। अतः आतापन योग के द्वारा उन्हें कितने ही समय *************[13]************
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