Book Title: Kashayjay Bhavna
Author(s): Kanakkirti Maharaj
Publisher: Anekant Shrut Prakashini Sanstha

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Page 24
________________ 张生荣然来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来 । कथायजय-भावना। माया का फल अभ्युत्थानविधि करोति सहसा बाष्पाम्बुपूर्णेक्षणो, गाढं श्लिष्यति भाषतेऽतिमधुरं दत्ते निजार्धासनम् | कृत्यं तत्पुनरन्यथा च कुरुते मायासमेतः पुमान्। यस्तं साधु विगर्हितं खलजनं कः सेवते शुद्धधीः ।।२०।। P अर्थ - मायाचारी पुरुष आँखों से अश्रु बहाता हुआ अतिशय हर्ष को व्यक्त | करता हुआ सत्कार करता है, गाद आलिंगन करता है, मधुर भाषण करता में है, अपन! आधा आसन देता है, परन्तु कार्य विपरीत ही करता है। ऐसे * साधुओं के द्वारा निन्दित दुष्ट पुरुष की सेवा कौन बुद्धिमान मनुष्य करता है ? कोई भी नहीं करता। * भावार्थ - संस्कृत नीतिकार ने लिखा है - मुखं पद्मदलाकारं, वाचा चन्दनशीतला। हृदयं कर्तरि तुल्यं, त्रयं धूर्तस्य लक्षणम् ।। अर्थात् - कमल के पत्तों के समान मुख, चन्दन के समान शीतल वचन एवं कैची के समान हृदय ये धूर्त के तीन लक्षण हैं। इस श्लोक में भी ग्रंथकर्ता लिखते हैं कि मायाचारी आगन्तुक इष्ट पुरुष का स्वागत करते हुए अपनत्व का प्रदर्शन करता है। उसके हावभावों | को देखकर ऐसा लगता है, मानों उसका अतिशय प्रेम उमड़ आया हो। परन्तु वह कार्य सदा ही विपरीत करता है। ऐसे दुष्ट पुरुष की संगति करने | - के लिए कोई भी तैयार नहीं होता है। 梁染米米米米米米米米米米求求求求求米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米冰求求求求法 व्याघ्री नो कुपिता न चापि शरभो नैवान्तकी राक्षसी, शस्त्रेणापि तथा न पावकशिखा नो शाकिनी डाकिनी । नो वज्राशनिरुत्तमाङ्गपतिता सर्वस्वहानिस्तथा, दुःखं भूरि यथा करोति रचिता माया नृणां संसृतौ ।।२१।। 来来来来来来来来来来来[92]来来来来来来来来来来来来来

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