Book Title: Kashayjay Bhavna
Author(s): Kanakkirti Maharaj
Publisher: Anekant Shrut Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ ※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※ | कषायजय-भावना हानि पहुँचा रहा हूँ। तुरहों को हानि होगी या लाभ ? यह सब अपने-अपने कर्मों के उदयादि पर निर्भर होता है। कोई एक व्यक्ति किसी दूसरे को हानि या लाभ नहीं पहुंचा सकता। किसी दूसरे को हानि पहुँचाने के लिए क्रोध | है करना मानो दूसरों को मारने के लिए अपने हाथ में तपाया हुआ लोहा लेने | PM के समान है। जैसे तपाया हुआ लोहा हाथों में लेकर दूसरे को मारने के * लिए तत्पर हुआ मनुष्य दूसरों को मार पाये या न मार पाये किन्तु स्वयं के * हाथ जला ही लेता है। उसीप्रकार क्रोधी मनुष्य दूसरों को हानि पहुँचा पाये * या न पहुँचा पाये स्वयं की हानि कर ही लेता है। 米米米米米米米米米米米米米米米米米米米法求米米米米米米米米米米米米 न स्वामिनं न नृपति न गुरुं न मित्रं, नो मातरं न भगिनीं न च बन्धुलोकम् | नो मन्यते प्रणयिनीमपि हन्तुकामो, ह्यात्मं च शत्रुसदृशं विदधाति कोपी ||६|| Ea अर्थ - क्रोधी व्यक्ति दूसरों को मारने की इच्छा करता हुआ स्वामी, राजा, it गुरु, मित्र, माता, बहिन, बन्धुजन तथा पत्नी को भी नहीं मानता है। वह * स्वयं को शत्रु के समान बना लेता है। * भावार्थ - क्रोध के आवेग में मनुष्य अन्धा हो जाता है। उसे अपने आराध्य | अथवा अपने आश्रितों की मर्यादाओं का ध्यान नहीं रहता। क्रोध एक ऐसा तीव्र आवंग है कि उसके आते ही विवेक समाप्त हो ही जाता है और मुँह खुल जाता है। क्रोध के आवेश में क्रोधी मनुष्य अपने स्वजनों का अपमान * करता है। वह परिणाम का विचार किये बिना ही यदा-तद्वा बोल देता है। अपमानित हुए स्वजन क्रोधी व्यक्ति से बात तक करना पसंद नहीं करते। क्रोधी व्यक्ति अपने स्वभाव से लाचार होकर कहीं हमारी अवहेलना न कर दे, ऐसा सोचकर लोग उससे दूर रहने में ही अपना भला समझते हैं। फलतः क्रोधी व्यक्ति परिवार में उपेक्षित हो जाता है। क्रोधी व्यक्ति का कोई | * भी अपना नहीं होता है। इसलिए उसके जीवन में नितान्त अकेलापन होता | है। यह अकेलापन उसे विक्षिप्त भी बना सकता है। 来来来来来来来法来体来来来来来来来米米米米米 聚米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47