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कषायजय-भावना
| अर्थ क्रोधी मनुष्य दूसरों को दुःखी करने की इच्छा से सुखपूर्वक न सोता है, न खाता है। अधिक क्या कहें ? क्रोध मनुष्यों के लिए अनर्थों की जड़
है।
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भावार्थ- क्रोध स्व और पर का घात करने वाली प्रवृत्ति हैं। यह भवभवान्तरों में वैर को कायम करने वाला है। दूसरों को दुःखी करने की भावना क्रोधी मनुष्य में इतनी तीव्र होती है कि उस क्रोधाग्नि के कारण वह न तो सुखपूर्वक सो सकता है, न खा सकता है। क्रोध सम्पूर्ण अनर्थों की परम्परा का जनक है।
विमुक्तिकान्तासुखसाधकं यत्, सम्मार्जितम् चारुचरित्रमुद्धम् । कोपाग्निना तत्परिदह्य सर्वं
द्वीपायनः संसृतिमध्युवास ||१०||
अर्थ मुक्ति रूपी कान्ता के सुख का साधक, सुन्दर और पवित्र चारित्र को
क्रोध रूपी अग्नि में जला कर द्वीपायन मुनि संसार में ही रहे। भावार्थ - क्रोध की भीषण ज्वाला में द्वीपायन मुनि ने अपने सारे तप को जला दिया था, जिसके कारण उन्हें संसार में ही रहना पड़ा।
द्वीपायन मुनि की कथा
एकबार बलभद्र ने भगवान नेमिनाथ से पूछा " हे नाथ! इस द्वारिका नगरी का विनाश किसप्रकार होगा ?" भगवान ने कहा- " रोहिणी का भाई द्वीपायनकुमार जो कि तुम्हारा मामा है, उसके क्रोध से यह नगरी बारहवें वर्ष में जल कर भस्म हो जायेगी। यह सब मदिरा के कारण होगा । " इन वचनों को सुनकर दुःखी हुआ है मन जिसका ऐसे द्वीपायन ने मुनि| दीक्षा धारण करके पूर्वदिशा की ओर विहार किया।
मदिरा के कारण इस नगर का विनाश होगा ऐसा जान लेने के कारण कृष्ण ने द्वारिका नगरी में मद्यनिषेध की घोषणा करवाई । मदिस *************************
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