Book Title: Kashayjay Bhavna Author(s): Kanakkirti Maharaj Publisher: Anekant Shrut Prakashini Sanstha View full book textPage 3
________________ --. -.:...L U A .. . *****※*※ ***** ** ** *米津* कषायजय-भावना गधा बका दिन ※※※※米米米米米米米渋米津浜** साधनापथ का पथिक आत्मा अपनी मोक्षमार्ग की यात्रा को निर्बाधगति | से करना चाहता है। सम्यग्दर्शन-ज्ञान और चारित्र के पथ से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने वाले इस चेतन को कषायरूपी चोरों से सतत सावधान रहना * चाहिये| लोक में एक बहुत ही सुन्दर उक्ति सुप्रसिद्ध है कि सावधानी हटी * और दुर्घटना घटी। चेतन थोड़ा सा भी असावधान हो गया कि वे कषायरूपी * चोर गुणों की पूंजी को लूट कर उसे पथभ्रष्ट कर देते हैं। कषायों को परिभाषित करते हुए आचार्य श्री शुभचन्द्र देव पाण्डव -पुराण में लिखते हैं . कषन्ति सद् गुणान्सर्वान् जीवानां बुद्धिशालीनाम् । कषायास्ते मतात्यज्यैस्त्याज्या मोक्षसुखाप्तये।। * अर्थात् - जो जीवों के समीचीन गुणों को कसती है, बाँध देती है, उसे कषाय कहते हैं। मोक्षसुख की प्राप्ति के लिए बुद्धिमान जीवों को कषायों का * त्याग कर देना चाहिये।। आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती कषायों को परिभाषित - करते हुए लिखते हैं - सुहदुक्खसुबहुसस्सं कम्मक्खेत्तं कसेदि जीवस्स। संसारदूरमेरं तेण कसाओत्ति णं बेति।। (जीवकाण्ड -१५/२८२) ka अर्थात् - जिसकारण से संसारी जीव के ज्ञानावरण आदि अनेक शुभ और अशुभ कर्मरूप धान्य के उत्पन्न होने की भूमि को जो जोतती है, उन्हें * गणधर देव कषाय कहते हैं। a कषाय शब्द की उत्पत्ति कृषि विलेखने धातु से हुई है। कृष धातु [* का प्रयोग कमजोर करना अथवा घात करना आदि अथों में भी होता है। * अतः आचार्य श्री नेमिचन्द्र देव निरुक्ति को स्पष्टरूप से अभिव्यक्त करते ※※※※※※※※ 米米米米米津※※※※※採※※※ 深米米米米米米米米米米米米E米米米米米米米米米米米米米Page Navigation
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