Book Title: Kashayjay Bhavna
Author(s): Kanakkirti Maharaj
Publisher: Anekant Shrut Prakashini Sanstha

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Page 8
________________ 来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来染米米米 कषायजय-भावना दाढ़ जैन सिद्धान्त भवन - आरा { बिहार } साहित्यप्रेमियों के लिए | सुपरिचित नाम है। प्रकाशित ग्रंथों के अतिरिक्त अनेक अप्रकाशित दुर्लभ पाण्डुलिपियों के दर्शन उस स्थान पर होते हैं। हमें आरा चातुर्मास के समय | | जिनवाणी के इस महाभण्डार के अनेक बार दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त र | हुआ। एकबार हस्तलिखित पाण्डुलिपियों का अवलोकन करते हुए हमें कषायजय-भावना नामक गंश की एक प्रति प्राप्त हई। ग्रंश कानड़ी भाषा में | | था। कानड़ी भाषा पढ़ने में हमारी असमर्थता से मन खिन्न हो गया। जैन सिद्धान्त भवन से ही एक शोधपत्रिका प्रकाशित होती है। उसके एक अंक में हमें पण्डितप्रवर श्री नेमिचन्द्र जी के द्वारा अनुवादित || कषायजय-भावना देखने को मिली। पण्डित जी ने मात्र ग्रंथ का भावार्थ करते हुए अनुवाद किया है। संघ में इसका स्वाध्याय हुआ। ग्रंथ अत्यन्त छोटा किन्तु मूल्यवान है। अतः हमने गुरुदेव से इस ग्रंथ का अनुवाद करने की प्रार्थना की। गुरदेव ने हमारी प्रार्थना को स्वीकार करके अपने पवित्र | करकमलों द्वारा इस कृति को सर्वजनग्राह्य बनाया। गुरुदेव के इस विशेष आशीर्वाद से हम क्रतार्थता का अनुभव कर रहे हैं। यह कृति मोक्षमार्ग पर अनुगमन करने वाले जीवों को विशेष रूप A से आनन्दित करेगी, ऐसा हमें विश्वास है। जिन लोगों ने इस ग्रंथ के म प्रकाशन में प्रत्यक्ष था परोक्ष रूप में सहयोग प्रदान किया है, उन सभी लोगों * को हमारा आशीर्वाद। " अनेकान्त श्रुत प्रकाशिनी संस्था " जो कि मुनिश्री के द्वारा लिखी हुई लोकोपयोगी रचनाओं को घर-घर में पहुँचाने का , में कार्य कर रही है, उसके समस्त मानद सदस्यों को हमारा आशीर्वाद। आओ, अब हम जिनवाणी के अमृत का रसास्वादन करें। आर्यिका सुविधिमती और आर्यिका सुयोगमती 来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来 张米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米浆米米米米米米米米米米求法 ।

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