Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 8
________________ विषय-सूची moc www विषय पृष्ठ | विषय पृष्ठ मङ्गलाचरण १ | नाम और स्थापनानिक्षेपको पृथक् न कहनेके बन्धकके दो अनुयोगद्वारोंकी सूचना २ । कारणका निर्देश बन्धका स्वरूप २ । द्रव्यादि चार निक्षेपोंका स्पष्टीकरण संक्रमका स्वरूप निक्षेपार्थको स्पष्ट करनेके लिए नयविधिका संक्रमको बन्ध संज्ञा प्राप्त होनेका कारण २ निरूपण . अकर्मबन्धका स्वरूप कर्मद्रव्यप्रकृतिसंक्रमके विषयमें आठ प्रकारके । कर्मबन्धका स्वरूप कह कर उसे संक्रम संज्ञा | निर्गमोंकी मीमांसा प्राप्त होनेके कारणका निर्देश | एकैकप्रकृतिसंक्रमका व्याख्यान उक्त दोनों अधिकारोंके कहनेकी प्रतिज्ञा | उसके विषयमें २४ अनुयोगद्वारोंकी सूचना इस विषयमें सूत्रगाथा __ और उनका नामनिर्देश गाथाके पदोंका व्याख्यान समुत्कोतेना बन्ध अनुयोगद्वारकी सूचनामात्र सर्व और नोसर्वसंक्रम संक्रम अनुयोगद्वार उत्कृष्ट और अनुत्कृष्टसंक्रम संक्रमके चार प्रकारके अवतारके निरूपणकी जघन्य और अजघन्यसंक्रम सूचना सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुवसंक्रम प्रथम प्रकार उपक्रम और उसके पाँच प्रकार ७ स्वामित्व उपक्रम आदि पाँचका विशेष व्याख्यान ७ एक जीवकी अपेक्षा काल द्वितीय प्रकार निक्षेपका विचार एक जीवकी अपेक्षा अन्तर तृतीय प्रकार नयके आश्रयसे निक्षेपकी नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय मीमांसा भागाभाग निक्षेपार्थका विशेष विचार परिमाण नोआगमद्रव्यसंक्रमके दो भेद और उनकी क्षेत्र मीमांसा स्पर्शन प्रकृतमें उपयोगी कर्मद्रव्यसंक्रमके चार भेद १४ | नाना जीवोंकी अपेक्षा काल प्रकृतिसंक्रमके दो भेद नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर १ प्रकृतिसंक्रम सन्निकर्ष . भाब प्रकृतिसंक्रमके कथनकी प्रतिज्ञा अल्पबहुत्व इस विषय में उपयोगी तीन गाथाएं और उनका व्याख्यान प्रकृतिस्थानसंक्रम उक्त गाथाओंका पदच्छेद १८ | प्रकृतिस्थानसंक्रम कहने की प्रतिज्ञा उपक्रमके पाँच प्रकार १८ | इस विषयमें सूत्र समुत्कीर्तना अर्थात् चारप्रकारका निक्षेप ३२ सूत्रगाथाएं ५६ ६३ १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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