Book Title: Karmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Author(s): Devendrasuri, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 7
________________ (६) अनुवाद का स्वरूप-कर्मग्रन्थों के क्रम और पढ़ने वाले की योग्यता पर ध्यान दे करके, प्रथम कर्मग्रन्थ तथा दूसरे, तीसरे आदि अगले कर्मग्रन्थों के अनुवाद के स्वरूप में थोड़ा-सा अन्तर रक्खा गया है। प्रथम कर्मग्रन्थ में कर्म विषयक पारिभाषिक शब्द प्रायः सभी आ जाते हैं तथा इसके पठन के बिना अगले कर्मग्रन्थों का अध्ययन ही लाभदायक नहीं हो सकता, इसलिये इसके अनुवाद में गाथा के नीचे अन्वयपूर्वक शब्दशः अर्थ देकर, पीछे भावार्थ दिया गया है। प्रथम कर्मग्रन्थ के पढ़ चुकने के बाद अगले कर्म-ग्रन्थों के पारिभाषिक शब्द बहुधा मालूम हो जाते हैं, इसलिये उनके अनुवाद में गाथा के नीचे मूल शब्द न लिख कर सीधा अन्वयार्थ दे दिया गया है और अनन्तर भावार्थ। दूसरे, तीसरे आदि कर्मग्रन्थों में गाथा के नीचे संस्कृत छाया भी दी हुई है जिससे थोड़ी भी संस्कृत जानने वाले अनायास ही गाथा के अर्थ को समझ सकेंगे। उपयोगिता-हमारा विश्वास है कि यह अनुवाद विशेष उपयोगी सिद्ध होगा, क्योंकि एक तो इसकी भाषा हिन्दी है और दूसरे इसका विषय महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त आज तक कर्मग्रन्थों का वर्तमान शैली में अनुवाद किसी भी भाषा में प्रकट नहीं हुआ। यद्यपि सभी कर्मग्रन्थों पर गुजराती भाषा में टब्बे हैं, जिनमें से श्री जयसोमसूरि-कृत तथा श्री जीवविजयजी-कृत टब्बे छप गये हैं, श्री मतिचन्द्र-कृत टब्बा अभी नहीं छपा है और एक टब्बा जिसमें कर्ता के नाम का उल्लेख नहीं है हमें आगरा के श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ के मन्दिर के भाण्डागार से प्राप्त हुआ है। यह टब्बा भी लिखित है। इसकी भाषा से जान पड़ता है कि यह दो शताब्दियों के पहले बना होगा। ये सभी टब्बे पुरानी गुजराती भाषा में हैं। इनमें से पहले दो टब्बे जो छप चुके हैं उनका पठन-पाठन विशेषतया प्रचलित है। उनके विचार भी गम्भीर हैं। इस अनुवाद के करने में टीका के अतिरिक्त उन दो टब्बों से भी मदद मिली है पर उनकी वर्णन-शैली प्राचीन होने के कारण आजकल के नवीन जिज्ञासु, कर्मग्रन्थों का अनुवाद वर्तमान शैली में चाहते हैं। इस अनुवाद में जहाँ तक हो सका, सरल, संक्षिप्त तथा पुनरुक्ति रहित शैली का आदर किया गया है। अत: हमें पूर्ण आशा है कि यह अनुवाद सर्वत्र उपयोगी होगा। पुस्तक को उपादेय बनाने का यत्न-हम जानते हैं कि कर्मतत्त्व के जो जिज्ञासु, अगले कर्मग्रन्थों को पढ़ने नहीं पाते वे भी प्रथम कर्मग्रन्थ को अवश्य पढ़ते हैं, इसलिये इस प्रथम कर्मग्रन्थ को उपादेय बनाने की ओर यथाशक्तिविशेष ध्यान दिया गया है। इसमें सबसे पहले एक विस्तृत प्रस्तावना दी हुई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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