Book Title: Karma Siddhant Parichaya Author(s): Ajit Kumar Publisher: Ajit Kumar View full book textPage 7
________________ प्राद्य-वक्तव्य जैन दर्शन के जिम तरह स्याद्वाद, अहिंसा आदि सिद्धान्त अन्य दर्शनों से मेल नहीं ग्वाते उसी प्रकार उसका कर्मसिद्धान्त भी अन्य धर्मों से विलक्षण है। अधिकतर अन्य धर्मों की यह मान्यता है कि जगत की रचना, जगत का संचालन तथा जगत का नाश परमात्मा करता है उसी की प्रेरणा पर संसारी जीव सुख दुख आदि फल भोगा करते हैं। यानी - ईश्वर की प्रेरणा के 'बिना संसार में कोई पत्ता भी नहीं हिल सकता | परन्तु जैनधर्म इसके विरुद्ध आवाज बुलन्द करता है कि जगत रचना या जगत के नाश में ईश्वर का कोई हाथ नहीं और संसारी जीवों को सुख, दुख आदि फल भी ईश्वर के द्वारा प्राप्त नहीं होता । संसारी जीव स्वयं अपनी अच्छी बुरी क्रियाओं से शुभ अशुभ कर्म कमाते हैं और स्वयं कर्मों के आधीन होकर सुग्य दुख आदि फल भोगते हैं । यही कर्मसिद्धान्त संक्षेप से इस ट्र ेक्ट में बतलाया गया है । कर्म क्या बला है इसका सारभूत परिचय पाठक इस ट्रैक्ट से प्राप्त करेंगे ऐसी आशा है । • अजितकुमारPage Navigation
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