Book Title: Karma Siddhant Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Ajit Kumar

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Page 44
________________ -[३६]लेता है कि अमुक जीव ऐसा ऐसा बुरा पाप कार्य करेगा जिससे कि मुझे उसको सजा देनी पड़ेगी तो अपनी दयालुता तथा सर्वशक्तिमत्ता के कारण ह पहले से ही उन जीवों को क्यों नहीं पाप करने से रोक देता है। पहले पाप कर लेने देना पीछे से दुखदायक दंड देना' यह काम दयालु ईश्वर का बहुत विचित्र है! '. . ३- जज सजा देते समय अपराधी को बतला देता है कि तुझे चोरी, जारी आदि की यह सजा दी जारही है किन्तु संसार में जीव जो अपने कर्मों का फल पा रहे हैं उन्हें परमात्मा कभी भी नहीं बतलाता कि तुमको यह सजा अमुक पाप की दी जारही है। ४- जज अल्पज्ञ (थोड़ा जानकार ) है इस लिये वह साक्षी (गवाही) आदि से पूरे सुबूत लेकर जब कसूर का निर्णय कर लेता है तब उप्त अपराधी को सजा देता है। किन्तु परमात्मा तो सर्वज्ञ है उसे तो किसी गवाही की जरूरत नहीं फिर जीवों को सजा देने में वह इतनी देर क्यों करता है कि पहले जन्म के पाप कर्मो की सजा इस जन्म में मिलती है तुरन्त उसी समय दंड क्यों नहीं दे देता ? ५- कृतकृत्य, निर्विकार परमात्मा को इन सांसारिक झगड़ों में पड़ने की क्या आवश्यकता है ? किसी को रुलाना, किसी को सताना, किसी को डराना, धमकाना किसी को हंसाना आदि कार्य निर्विकार दयालु परमात्मा के कदापि नहीं

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