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- [३५]निरपराध गायों को कत्ल कर रहा है, शिकारी हिरणों को मार रहा है, व्यभिचारी किसी सती स्त्री का जबर्दस्ती शीलभंग कर रहा है, कोई निर्दय किसी दीन, हीन, निर्बल मनुष्य को सता रहा है किन्तु वह सब उस परमात्मा के किये हुए न्याय के अनुसार दंडव्यवस्था ( यानी-पहले जन्ममें किये हुए पापों की की सजा का इन्तिजाम ) ही माननी पड़ेगी ईश्वर की प्रेरणा से ही कसाई कत्ल कर रहा है, शिकारी शिकार खेल रहा है, व्यभिचारी बलात्कार कर रहा है और दुष्ट मनुष्य गरीब को पीड़ा दे रहा है क्योंकि परमात्मा निराकार अशरीर है वह खुद अपराधी (कसूरबार) को सजा दे नहीं सकता इस लिये वह उन कसाई, शिकारी, व्यभिचारी, दुष्ट मनुष्यके द्वारा उन गायों, हिरणों, सती स्त्री आदि को सजा दिला रहा है। इस कारण जज की आज्ञा से किसी मनुष्य पर कोई सिपाही वैत मार रहा है तो वह सिपाही उस मार पीट का जिम्मेवार नहीं है और न माना जाता है इसी तरह परमात्माके न्याय अनुसार उसकी प्रेरणा पर गौ आदिको पहले जन्मके अपराधोंकी सजा देने वाले कसाई, व्यभिचारी, शिकारी, चोर, डाकू आदि पापी नहीं कहे जा सकते क्योंकि वे तो जज रूप परमात्मा की ओर से पुलिस का काम कर रहे हैं। फिर भी परमात्मा की पुलिस का काम देने वाले, दूसरों को उनके कर्मों का फल भुगाने वाले वे चोर, डाकू आदि पुलिस द्वारा पकड़े जाते हैं और जेज़ में भेजे जाते हैं ।
२- ईश्वर त्रिकालज्ञाता है इस लिये पहले से ही जान